मेरी कश्मकश का कैसे लफ्ज़ों में इज़हार हो,
मेरी बेक़रारी जाने वो, जो खुद भी बेक़रार हो!
Aa Bhi Jaao Meri Aankhon Ke Rubaru Ab Tum,
Kitna Khwabon Mein Tujhe Aur Talasha Jaye.
मैं तमाम दिन का थका हुआ,
तू तमाम शब का जगा हुआ,
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर,
तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ।
नींद सोती रहती है हमारे बिस्तर पे,और हम टहलते रहते हैं तेरी यादों में।
Aa Bichadne Ka Koi Aur Tareeqa DhoodhenPyyar Badhta Hai Meri Jaaan Khafa Rahne Se