जो आग इधर लगी थी उधर भी लगा आए हम
चुमकर उनके लबों को आज फिर से भाग आए हम
फिर से मिले वो आज अजनबी से बनकर,और हमें आज फिर से मोहब्बत हो गई।
साथ रोती थी हँसा करती थी
एक परी मेरे दिल में बसा करती थी
किस्मत थी हम जुदा हो गए वरना वो
मुझे अपनी तकदीर कहा करती थी
Diye Hain Zindagi Ne Zaḳhm Aise;Ki Jin Ka Waqt Bhi Marham Nahin Hai!
बंदा नहीं है कोई टक्कर
का आज की तारीख में,
इसीलिए लफ्ज कम पड़
जाते है हमारी तारीफ़ में..!!