इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से मुहर्रम को नए साल का पहला महीना माना जाता हैं. जोकि शिया और सुन्नी दोनों प्रकार के मुसलमानों के लिए बेहद खास समझा जाता हैं. इस साल 9 अगस्त से इस माह की शुरुआत हो गई हैं.
जिसके दशवें दिन मुहर्रम मनाया जाता हैं. इस साल मुहर्रम 20 अगस्त को मनाया जायेगा. आज हम आपको मुहर्रम से जुड़ी कई सारी जानकारियां देने जा रहे हैं. जैसे ये क्यों मनाया जाता हैं? आशूरा क्या होता हैं? और इसका क्या महत्व होता हैं? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब हर कोई नहीं जानता हैं. तो चलिए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं...
मुहर्रम मनाने की ये हैं खास वजह
इस्लाम में भी अन्य धर्मों की तरह कई सारे त्यौहार मनाये जाते हैं. साथ ही सभी त्योहारों के पीछे कोई ना कोई कारण जरूर होता हैं. जैसे अन्य धर्मों के त्योहारों में देखने को मिलता हैं. ठीक ऐसे ही मुहर्रम मनाने के पीछे भी एक ऐतिहासिक कारण माना जाता हैं. इस्लामिक किताबों और मौलवियों के मुताबिक इस त्यौहार को पहले पैगम्बर हजरत मुहम्मद के नवासे की याद में मनाया जाता हैं.
हजरत मुहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में इसको मनाया जाता हैं. इस्लामिक मान्यतों के अनुसार आज से करीब 680 ईस्वी पूर्व मुहर्रम माह के 10वें दिन कर्बला में भयंकर नरसंहार हुआ था. जिसमें हजरत इमाम हुसैन लड़ते-लड़ते शहीद हो गए थे. इसके बाद से उन्हीं की याद में मुहर्रम मनाने की परम्परा शुरू हुई.
आशूरा क्या हैं?
इस्लाम के अनुसार मुहर्रम के 10वें दिन को आशूरा कहा जाता हैं. इसी दिन को मुहर्रम मनाया जाता हैं. हजरत इमाम की याद में इस दिन ताजिया निकाले जाते हैं. इस दिन को इस्लाम में बहुत ही निंदनीय दिन माना जाता हैं. साथ इमाम की याद में शिया वर्ग के मुसलमान काले कपड़े पहनते हैं. साथ इन ताजियों के जरिए हजरत इमाम के नेक विचारों को जनता तक पहुंचाने का काम होता हैं.
मुहर्रम का महत्व क्या हैं?
शिया मुस्लिम समुदाय की माने तो वो इमाम हुसैन की शहादत के शोक को इस दिन मनाते हैं. इस दिन हुसैन दुश्मनों से लड़ते लड़ते इराक में कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे. इराक में इस मैदान को पाक जमी और तीर्थस्थल के तौर पर जाना जाता हैं. मुहर्रम का इतिहास इस्लाम में बहुत ही पुराना हैं. इस दिन कई सारे हुसैन को मनाने वाले मुसलमान या हुसैन या हुसैन करते हुए उनको याद करते हैं.