आप सभी ने हवाई चप्पल जरूर पहना होगा. स्लीपर के मार्किट में हवाई चप्पलों की काफी डिमांड हैं. हम कितने भी महंगे जूतें पहन ले, कोई सी भी सैंडल पहन ले. लेकिन जो आराम हवाई चप्पल में मिलता हैं वो कहीं नहीं हैं.
लेकिन क्या भी आपने इसके नाम पर गौर किया हैं? आखिर इस चप्पल का नाम हवाई चप्पल ही क्यों पड़ा? जबकि ये हवा में भी नहीं उड़ती हैं. इसके बावजूद भी इसका नाम इतना डिफरेंट क्यों हैं? आमतौर पर किसी भी प्रोडक्ट का नाम उससे मिलता-जुलता ही रखा जाता हैं. मगर यहाँ ऐसा नहीं हैं. तो आज हम आपको इस नाम के पीछे छुपे राज के बारे में बताने जा रहे हैं.
कैसे पड़ा इसका नाम?
हवाई चप्पल के नाम के पीछे कई सारे मत हैं. कुछ लोगों के अनुसार इसका निर्माण अमेरिका के हवाई आइलैंड पर टी नाम के एक पेड़ से होता हैं. ये एक रबर का पेड़ हैं. जिसके फैब्रिक से इस चप्पल को बनाया जाता हैं. जिसकी वजह से ही इसका नाम हवाई चप्पल पड़ा. लेकिन कई सारे लोग मानते हैं कि ये चप्पल बहुत ही हल्के और ओपन फॉर्मेट में होते हैं. जिसकी वजह से ये काफी ज्यादा आरामदायक होते हैं. इसी कारण से इसे हवाई चप्पल कहा जाता हैं.
इसकी डिज़ाइन जापान की मशहूर चप्पल ‘जोरी’ या हाईहील सैंडल्स ‘गेटा’ से काफी मिलती हैं. इस कारण से भी इसका नाम हवाई चप्पल पड़ता हैं.
हवाईनाज ब्राजील कंपनी की वजह से हुई फेमस
इन हवाई चप्पलों को हवाईनाज के नाम की एक ब्राजीलियन शू-कंपनी ने ही साल 1962 में बनाना शुरू किया. इसने ही इस सफेद रंग के ब्लू स्ट्रिप वाली चप्पल को बनाकर इसको बेचना शुरू किया. जिसके बाद से ही ये दुनिया के कोने-कोने में ज्यादा फेमस हुई.
भारत में इस चप्पल को फेमस करने का श्रेय बाटा को जाता हैं. बाटा ने ही इन सभी चप्पलों को भारत के एक घर में पहुंचाने का काम किया.
1880 से हो रहा हैं उत्पादन
जापान में सबसे पहले साल 1880 में गाँव के किसानों और फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के लिए इसको अमेरिका से मंगाया गया था. साल 1932 में पहली बार कोबलर एल्मर स्कॉट ने जिस फैब्रिक से चप्पल बनाई जाती हैं, उसका इस्तेमाल करके इस डिज़ाइन को बनाया था. इसके बाद धीरे-धीरे इन चप्पलों का चलना तेजी से हुआ.