महाभारत युद्ध में हर एक योद्धा के पास कोई न कोई दिव्यास्त्र था जो किसी न किसी देवता ने दिया था. इसी कड़ी में कर्ण भी एक ऐसा योद्धा था जिसने अपने तपोबल से कई दिव्यास्त्र पाए थे.
कर्ण महाभारत का इकलौता ऐसा योद्धा था जिसे अपने जन्म से ही अजेय रहने का वरदान मिला था और ये वरदान किसी को नहीं मिला था. कर्ण को महाभारत में सबसे ज्यादा अपमान और तिरस्कार सहन पड़ा था. सबसे योग्य होने के बाद भी उसे पग पग पर अपमानित होना पड़ा था.
भगवान् इंद्र ने कर्ण से खुश होकर उसे एक ऐसा अमोघ अस्त्र दिया था जिसका वार कभी भी खाली नहीं जा सकता था. इसका प्रहार कोई भी कवच भेद सकता था.
लेकिन इसकी एक ख़ासियत यह भी थी की इसका उपयोग सिर्फ़ एक बार ही किया जा सकता था. जब शत्रु आपके सामने हो तभी.
श्री कृष्ण को इस बात की जानकारी थी इसलिए उन्होंने इसका प्रयोग करने के लिए और अर्जुन को बचने के लिए भीम के पुत्र घटोत्कच को रण में बुलवाया और उसका वध करने के लिए न चाहते हुए भी कर्ण को वो दिव्यास्त्र चलना पड़ा