भगवान राम लाखों-करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के पप्रतीक हैं. हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार उन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. साथ ही भगवान श्रीराम मर्यादापुरुषोत्तम राम कहें जाते हैं.
भगवान राम ने अपने जीवनकाल में कई सारे आदर्श स्थापित किया हैं. जब भी भगवान राम की बात होती है, तो उनमें एक आदर्श राजा, आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, दोस्त, आदर्श शिष्य और पति हर किसी के गुण दिखाई देता हैं. उन्होंने मानव जीवन में कई सारे आदर्शों को स्थापित किये हैं. ऐसे में हर इंसान को उनके जीवन से कुछ न कुछ जरूर सीखना चाहिए. आज हम आपको भगवान राम के जीवन से सीखने योग्य कुछ खास बातों को बताने जा रहे हैं. तो आइये जानते है इनके बारे में......
कभी हारों नहीं
भगवान राम का जीवन शुरू से लेकर अंत तक संघर्षों से भरा रहा. परिस्थितियां उनके उल्ट थी इसके बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी. रावण के पास से सीता का पता लगाने से लेकर, समुद्र पर पुल बनाने और लंका विजय तक की यात्रा उनके लिए भी आसान नहीं थी. लेकिन बावजूद इसके उन्होंने अपनी हिम्मत बनाये रखी और अंत तक संघर्ष करते रहे. इसलिए एक इंसान को ये बात जरूर सीखना चाहिए कि उसे अंत तक हार नहीं मानना चाहिए.
अहंकार से दूर रहें
भगवान श्रीराम को कई सारे अस्त्रों-शास्त्रों और धनुर्विद्या का अच्छे ज्ञान था. बावजूद इसके उन्होंने इसका अहंकार अपने मन में नहीं आने दिया. उनके पूरे व्यक्तित्व से विनम्रता ही दिखाई देती हैं. वो अपने हितैषियों से लेकर मित्रों, गुरुओं और अपने शत्रुओं से भी विनम्रता से बात करते थे. कभी भी किसी का अनादर नहीं करते थे. इसलिए हर मनुष्य को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसके जीवन में कभी भी अहंकार नहीं आना चाहिए क्योंकि अहंकार पतन का कारण होते हैं.
शालीनता और धैर्य
भगवान राम ने कई सारे राक्षसों का वध किया. लेकिन कभी भी उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया. वो काफी ज्यादा शांत और सौम्य स्वभाव के थे. उनमें कभी क्रोध का भाव आया ही नहीं. आज कल मनुष्य बहुत जल्दी क्रोधित हो जाते हैं. साथ ही उनके अंदर धैर्य का लोप हो रहा हैं. ऐसे में उन्हें भगवान राम के इस गुण को जरूर सीखना चाहिए.
बड़ों का आदर और सम्मान करना
आज की युवा पीढ़ी बड़ों का आदर और सम्मान करने में संकोच करती हैं. उनके अंदर से बड़ों के प्रति सम्मान की भावना खत्म हो रही हैं. ऐसे भगवान राम के जीवन से इस गुण को ऐसे युवाओं को जरूर सीखना चाहिए. भगवान राम अपने से बड़ों का खूब आदर और सत्कार करते थे. उन्होंने माता-पिता, गुरुओं आदि सभी के वचन का पालन किया. इसलिए तो वो मर्यादापुरुषोत्तम राम कहलायें.