एक नदी के पास जामुन का एक बड़ा पेड़ था. इस पेड़ पर टीपू नामक एक बन्दर रहता था. एक बार चीपू नामक एक मगरमच्छ नदी में आया तो बंदर ने दोस्त समझकर अपने साथ उसे भी मीठे-मीठे जामुन खिलाये.
इस प्रकार मगरमच्छ वहाँ आता रहता एवं बंदर उसे जामुन खिलाता रहता. एक बार मगरमच्छ की पत्नी मगरमच्छ से बोली- ”इतने मीठे जामुन प्रतिदिन खाने वाले बंदर का कलेजा कितना मीठा होगा उसे मैं खाना चाहूँगी, तुम किसी प्रकार उसे मेरे पास ले आओ”
पत्नी मोह से घिरा मगरमच्छ न चाहते हुए भी यह बात मन में लिया व छल करते हुए बंदर से बोला कि मेरी पत्नी ने मुझसे कहा है कि क्या मैं इतना स्वार्थी हूँ जो मीठे जामुन खाकर आ जाता हूँ परन्तु उस मित्र को घर आमंत्रित तक नहीं करता.
मगरमच्छ टीपू को पीठ पर बिठाकर ले जा रहा था एवं मार्ग में मन की वास्तविक बात बतायी कि वह तुम्हारा कलेजा खाना चाहती है. बंदर ने यह सुनते ही बोला दोस्त मैं तो अपना कलेजा पेड़ पर ही भूल गया और मगरमच्छ ने उससे वापस पेड़ के पास ले आया. टीपू कूद कर पेड़ पर चढ़ गया और उसकी जान बच गया.
सीख : लालच बुरी बला, हर किसी को मित्र न समझें; कृतघ्न न बनें, किसी से विश्वासघात न करें.