एक गाँव में दो मित्र रहते थे सोहन और मोहन. दोनों दोस्तों ने एक दिन शहर जा कर खूब धन कमाने का फैसला किया और दोनों निकल गए.
करीब तीन सालों के बाद दोनों ने खूब सारा धन कमा करके अपने गाँव लौटने का फैसला किया.
गाँव पहुंचने से पहले एक जंगल था, वहां पर डाकुओं का दर था इसलिए दोनों ने अपने धन का आधा आधा हिस्सा वही एक पीपल के पेड़ के नीचे छुपा दिया और घर चले आये.
बहुत दिनों तक आराम से रहने के बाद एक दिन सोहन रात में जा कर पूरा धन वापस चुरा कर ले आता हैं और अगले दिन सुबह मोहन से जाकर कहता हैं की दोस्त मेरा धन ख़त्म होने वाला है. मोहन भी बोलता है है भाई धन तो मेरा भी ख़त्म ही हो गया हैं. क्यों न हम चलकर अपने छुपाये हुए धन को ले आये. दोनों मित्र उसी दिन शाम को धन लेने पहुंचे लेकिन वहां पर कुछ भी न था. सोहन ने मोहन पर सारा इलज़ाम लगा दिया और दोनों लड़ने लगे.
बात बढ़ने लगी तब दोनों राजा के पास गए. राजा ने दोनों की बात सुनी और कहा , "ठीक है जिस पेड़ के नीचे से धन गायब हुआ हैं कल वही पेड़ बताएगा की चोर कौन हैं? और उस पेड़ की गवाही ही मान्य होगी.
दोनों अपने घर आ गए. सोहन ने रात में अपने पिता से साड़ी बात बता दी और उनको राज़ी कर लिया की वो कल पेड़ के अंदर घुस कर मोहन को दोषी बना दे.
अगली सुबह राजा और गाँव वालों के साथ दोनों पेड़ के नीचे पहुंचते हैं और राजा के पूछने पर पेड़ में छिपा सोहन का बाप मोहन चोर हैं मोहन चोर हैं कहा कर चिल्लाने लगता हैं.
सब हैरान हो जाते है, तभी राजा हुकुम देते है की इस पेड़ को जला दिया जाए क्योंकि इसने अपने सामने चोरी होते हुए भी उससे रोकने का प्रयास नहीं किया.
राजा के कहे के अनुसार आग लग दी जाती है, पेड़ जलने लगता है और उसकी जलन से सोहन का बाप आत्म रक्षा के लिए बाहर आ जाता हैं. सब लोग को असली चोर का पता लग जाता है और राजा सोहन और उसके बाप को दंड देते है और पूरा धन मोहन को दे देते हैं.
कहानी से सीख
हमे कभी भी लालच में आकर दूसरे का धन नहीं हड़पना चाहिए इसका परिणाम बहुत बुरा होता हैं.