आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (4 अक्टूबर, 1884- 2फरवरी, 1941)

हिन्दी आलोचक, निबन्धकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे.

सन् 1888 ई. में वे अपने पिता के साथ राठ हमीरपुर गये तथा  विद्याध्ययन प्रारम्भ किया. 1892 में उनके पिता  सदर क़ानूनगो की भूमिका में मिर्ज़ापुर आ गए. साथ ही इनको भी आना पड़ा.   सन् 1901 ई. में उन्होंने मिशन स्कूल से स्कूल फ़ाइनल की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा प्रयाग के कायस्थ पाठशाला इण्टर कॉलेज में बारहवीं पढ़ने के लिए आये.

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म 1884 में बस्ती जिले के अगोना नामक गांव में हुआ था.

2 फरवरी, सन् 1941 को हृदय की गति रुक जाने से शुक्ल जी का देहांत हो गया.


कृतियाँ

आलोचनात्मक ग्रंथ : सूर, तुलसी, जायसी पर की गई आलोचनाएं, काव्य में रहस्यवाद, काव्य में अभिव्यंजनावाद, रसमीमांसा आदि शुक्ल जी की आलोचनात्मक रचनाएं हैं. 

निबन्धात्मक ग्रन्थ : उनके निबन्ध चिंतामणि नामक ग्रंथ के दो भागों में संग्रहीत हैं। चिंतामणि के निबन्धों के अतिरिक्त शुक्लजी ने कुछ अन्य निबन्ध भी लिखे हैं, जिनमें मित्रता, अध्ययन आदि निबन्ध सामान्य विषयों पर लिखे गये 


जग के सबही काज प्रेम ने सहज बनाये,

जीवन सुखमय किया शांति के स्रोत बहाये।

द्वेष राग को मेटि सभी में ऐक्य बढ़ाया,

धन्य प्रेम तव शक्ति जगत को स्वर्ग बनाया ।

 

गगन बीच रवि चंद्र और जितने तारे हैं,

सौर जगत अगणित जो प्रभु ने विस्तारे हैं।

सबको निज निज ठौर सदा प्रस्थित करवाना,

जिस आकर्षण शक्ति प्रेम ने ही हैं जाना ।