हिंदी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद का योगदान अविस्मरणीय हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य में कहानी, उपन्यास दोनों विधा में अपना अमिट छाप छोड़ा हैं.
इनके द्वारा लिखें गए उपन्यास भारतीय समाज के हर एक पहलूं को जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं. इनकी कहानियों में तत्कालीन समाज के समस्त उतार चढ़ाव और हर उस बात का ज़िक्र मिलता हैं जो समाज में व्याप्त थे. इनकी कहानी 'ठाकुर के कुंए', 'शूद्र', 'बड़े घर की बेटी', 'कफ़न', 'नमक का दरोगा' आदि हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध कृतियां हैं. इनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था बाद में इन्होंने अपना नाम प्रेमचंद रखा लिया. वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे.
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था.
"जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया.
जब पंद्रह साल के हुए तब उनकी शादी कर दी गई और सोलह साल के होने पर उनके पिता का भी देहांत हो गया.
1921 ई. में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून को त्यागपत्र दे दिया.
मर्यादा, माधुरी आदि पत्रिकाओं में वे संपादक पद पर कार्यरत रहे.
लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया.
साहित्यिक कृतियाँ
ग़बन
गोदान
कर्मभूमि
सेवासदन
निर्मला (उपन्यास)
1920-1936 तक प्रेमचंद लगभग दस या अधिक कहानी प्रतिवर्ष लिखते रहे। मरणोपरांत उनकी कहानियाँ "मानसरोवर" नाम से 8 खंडों में प्रकाशित हुईं.