एक बार एक किसान बहुत ज़्यादा परेशान था. उसने अपने खेत में नई फसल बो दी थी लेकिन उसके पास पानी का जुगाड़ नहीं था कि कैसे वो अपने खेत में पानी दे. उसने बहुत कोशिश की लेकिन कोई रास्ता नहीं मिला.
वो उदास होकर अपने खेत से घर जाने लगा तभी उसे एक कुआँ दिखाई दिया जो उसके खेत से कुछ ही दूरी पर था. वो बहुत ख़ुश हुआ, उसने सोचा कि वो कल आ के अपने खेत में यहीं से पानी डालेगा और अपने घर जा कर सो गया. अगली सुबह वो जब कुएं से पानी निकालने पहुंचा तभी उसे एक आवाज़ ने रोक दिया. वो हैरान हो गया की ये कौन है जो उसे रोक रहा था? उसने देखा तो उसके पीछे एक आदमी खड़ा था, उसने पास आकर कहा ये मेरा कुआँ हैं तुम यहाँ से ऐसे पानी नहीं ले सकते हो? तुम्हें इसके लिए दाम देना होगा. तुम पांच स्वर्ण मुद्राएं देकर ये कुआँ ख़रीद लो. किसान अगले दिन उस कुएं को उस आदमी से ख़रीद लिया और जैसे ही पानी निकालने चला उसने फिर रोक दिया. वह बोला कि, " तुमने सिर्फ़ कुएं का दाम दिया हैं पानी का नहीं इसलिए तुम यहाँ से पानी नहीं ले सकते." किसान उसकी चालाकी समझ गया और बादशाह अकबर के दरबार में पहुँच गया. बादशाह ने मामले को सुनने के बाद हैरान हो गए की इस मुद्दे का फैसला कैसे किया जाये? क्योंकि आदमी तो सही कह रहा है कि किसान ने पानी का दाम नहीं दिया हैं. बादशाह ने बीरबल को बुलाया. बीरबल को मामले की पूरी जानकारी दी गई, बीरबल ने कहा, जहांपना ये तो बहुत आसान सा फैसला हैं. अकबर अब बहुत हैरान हो गए और बीरबल से पूछा कैसे? बीरबल ने कहा, " जहांपना चूँकि किसान ने कुएं का दाम देकर उसे ख़रीद लिया हैं इसलिए अब वो कुएं का मालिक हैं और इस आदमी से पूछिए की उसका पानी किसान के कुएं में क्या कर रहा हैं?" इससे बोलिये अपना पानी जल्दी से जल्दी कुएं से निकाल ले वरना उसे दंड दिया जायेगा. अब उस इंसान को पता चल गया की उसकी चालाकी पकड़ी गयी, उसने तुरंत बादशाह से माफ़ी मांग ली. अकबर ने उसे 100 सोने के सिक्के देने की सज़ा सुनाई और किसान को कुआँ और उसका पानी दोनों दे दिया.