सदियों पुरानी बात हैं एक बड़े से तालब के किनारे एक सांप रहता था. वो बहुत ही भयंकर और विषैला था. इसलिए उसका नाम था विषधर.
उसी तालाब में मेढ़कों का एक साम्राज्य था, जिसका राजा था मंदक.
वो बहुत ही भोला और तीव्रविश्वासी था. वो लोगों की बातों का जल्दी से भरोसा कर लेता था.
एक दिन जब वह पानी के बाहर घूम रहा था तभी उसे विषधर दिखाई दिया. वो उसे देखकर बोला आज कल बहुत कमज़ोर लग रहे हो, क्या हुआ शिकार नहीं करते क्या? विषधर ने कहा, अब से मैं शिकार नहीं करूँगा कल रात मेरे सपने में देवी माँ आयी थी और उन्होंने ने कहा कि विषधर अब तुम मेढ़कों को खाना बंद करो और उनकी सहायता करना शुरू करो. तभी से मैंने उस बात को गाँठ बाँध ली है. मंदक ने कहा ये तो सही हैं. फिर क्या सोचा है तुमने? यहीं सोचा हैं की तुम सभी मेंढकों को अपनी सवारी करवाऊंगा और इसी से मेरा प्राश्चित हो जायेगा.
मंदक सांप से यह बात सुनकर अपने परिजनों के पास गया और उनको भी उसने सांप की वह बात बता दी. इस तरह से यह बात सब मेढकों तक पहुंच गई. अगले दिन सभी मेंढकों के साथ मंदक उस सांप की पीठ पर बैठ कर मौज़ करने लगा. इसी तरह कई दिन बीत गए अब मेंढकों को और भी मज़ा आ रहा था.
एक दिन जब वह मेंढकों को बैठाकर चला, तो उससे चला नहीं गया. उसको देखकर मेढ़कराज ने पूछा, “क्या बात है, आज आप चल नहीं पा रहे हैं?”
हां, मैं आज भूखा हूं और इस उम्र में कमज़ोरी भी बहुत हो जाती है, इसलिए चलने में कठिनाई हो रही है.”
मंदक बोला, “अगर ऐसी बात है, तो आप छोटे-मोटे मेंढकों को खा लिया कीजिए और अपनी भूख मिटा लिया कीजिए.” इसके बाद विषधर ने मेंढकों को खाना शुरू कर दिया. धीरे धीरे सारे मेंढकों को वो चट कर गया और अंत में एक दिन मेंढ़क राज और उसके परिवार को भी खा लिया.
कहानी से सीख-
हमें कभी भी अपने शत्रु की बातों का भरोसा नहीं करना चाहिए. वो हमेशा हमारा अहित चाहता हैं.