हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार थे। हरिशंकर परसाई हिंदी साहित्य के महानतम व्यंगकार हैं. इन्होंने ने ही व्यंग विधा का आरम्भ किया था, इसलिए इन्हें व्यंग का पितामह भी कहा जाता हैं.
जन्म जमानी, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में हुआ था। हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया.
इनके व्यंग सामाजिक बुराइयों पर बहुत ही मार्मिक चोट करती हैं और समाज के हर एक हिस्से को लेकर इन्होंने व्यंग किया हैं. इनकी रचना निंदा रस इसका एक बेहतरीन उदाहरण हैं.
परसाई मुख्यतः व्यंग -लेखक है, पर उनका व्यंग केवल मनोरजन के लिए नही है.
प्रमुख रचनाएं
- कहानी–संग्रह: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव.
- उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल.
- संस्मरण: तिरछी रेखाएँ.
लेख संग्रह:
- तब की बात और थी,
- भूत के पाँव पीछे,
- बेइमानी की परत,
- अपनी अपनी बीमारी,
- प्रेमचन्द के फटे जूते,
- माटी कहे कुम्हार से,
- काग भगोड़ा,
- आवारा भीड़ के खतरे,
- ऐसा भी सोचा जाता है,
- वैष्णव की फिसलन,
- पगडण्डियों का जमाना,
- शिकायत मुझे भी है
- , उखड़े खंभे,
- सदाचार का ताबीज,
- विकलांग श्रद्धा का दौर,
- तुलसीदास चंदन घिसैं,
- हम एक उम्र से वाकिफ हैं, बस की यात्रा
- परसाई रचनावली (सजिल्द तथा पेपरबैक,
- छह खण्डों में; राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित)