हिंदी साहित्य के श्रृंगार रस के जाने माने रचयिता कविवर बिहार रीतकाल के महान कवि थे. इन्होंने श्रृंगार रस से वशीभूत रचनाएँ की हैं. इनकी रचनाओं में ईश्वर की भक्ति और प्रेम स्पष्ट झलकता हैं.
बिहारीलाल का जन्म संवत् 1595 ई. ग्वालियर में हुआ. वे जाति के माथुर चौबे थे.पिता का नाम केशवराय था.
जन्म ग्वालियर जानिये खंड बुंदेले बाल।
तरुनाई आई सुघर मथुरा बसि ससुराल॥
एकमात्र रचना सतसई
इसमें 719 दोहे संकलित हैं.
सतसई को तीन मुख्य भागों में विभक्त कर सकते हैं- नीति विषयक, भक्ति और अध्यात्म भावपरक, तथा श्रृंगारपरक.
सतसइया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।
देखत मैं छोटे लगैं, घाव करैं गंभीर॥
काव्य
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।सोह करे,
भौंहनु हंसे दैन कहे, नटि जाय॥
इति आवत चली जात उत, चली, छसातक हाथ।
चढी हिंडोरे सी रहे, लगी उसासनु साथ॥
औंधाई सीसी सुलखि, बिरह विथा विलसात।
बीचहिं सूखि गुलाब गो, छीटों छुयो न गात॥