दुष्ट बंदर और शरीफ भैंसा

Dusht Bandar Aur Sharif Bhaisa  दुष्ट बंदर और शरीफ भैंसा

सालों पहले की बात हैं ऊंची पहाड़ी के तराई में एक बहुत ही विशाल और घना की जंगल था. वो जंगल जितना घना था उससे कहीं ज़्यादा ख़तरनाक भी था. उसमें तरह-तरह के खुंखार जंगली जानवर रहते थे. 

दुष्ट बंदर और शरीफ भैंसा

उसी जंगल में एक शरारती बन्दर और एक सीधा साधा भैंसा दोनों रहते थे. बन्दर बहुत ज़्यादा शरारती और दुष्ट था वह हमेशा भैंसे को परेशान किया करता था. किन्तु भैंसा इतना सज्जन था कि वो उसे कुछ नहीं कहता था. 

जब भी भैंसा उसके पेड़ के नीचे घास खाने आता वो उसे परेशान करना शुरू कर देता. उसके ऊपर वो पेड़ से फल तोड़ के फेंकता तो कभी उसके ऊपर चढ़ के कूदने लगता. लेकिन भैंसे ने कभी कुछ नहीं कहा. ये सिलसिला सालों से चला आ रहा था. बन्दर उसे इसी तरह परेशान करता और वो चुप चाप सब सहन करता. 

उसी पेड़ पर एक कौआ भी रहता था उसने उस भैंसे को कितनी बार समझाया कि तुम्हें उस बन्दर को सबक सीखना चाहिए लेकिन वो भैंसा ये कहकर बात टाल देता कि, एक दिन उसे अपने किए कि सज़ा ज़रूर मिल जाएगी.  दिन गुज़रते गए और बन्दर की शैतानियां दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी.  एक दिन वो भैंसा घास चरने के लिए दूर जंगल के अंदर चला गया और उस पेड़ के नीचे दूसरा भैंसा घास चरने के लिए चला आया. बंदर को लगा कि ये वहीं भैंसा है जिसे वो परेशान करता था. बंदर ने उस भैंसे के ऊपर कूदना शुरू कर दिया. वो भैंसा पहले वाले भैंसे की तरह नहीं था वो बहुत ही गुस्सैल और ख़तरनाक था उसे बंदर पर गुस्सा आ गया और उसने उस बंदर को अपने सींग से उठाकर नीचे जमीन पर पटक दिया. बंदर अचानक हुए इस वार से अनजान था और जमीन पर गिरते ही मर गया.

कुछ देर बाद जब पहला भैंसा वापस आया तब कौवें ने उसे बताया कि बंदर कैसे मरा.


कहानी से सीख

हमें कभी भी किसी सीधे इंसान की शराफत और सज्जनता का गलत फायदा नहीं उठाना चाहिए.