एक दिन अचानक महाराज अकबर की अंगूठी उनके सेवक टूट गई. कुछ देर बाद अकबर ने देखा कि उनकी प्रिय अंगूठी गायब है. उन्होंने ने सेवक से उस अंगूठी के बारे में पूछा, तो सेवक डर के मारे कांपने लगा, सेवक को जल्दी में कोई अच्छा बहाना नहीं सूझा, तो उसने कहा कि महाराज अंगूठी को मैं अपने घर ले गया हूं, ताकि अच्छे से साफ कर सकूं.
यह सुनते ही अकबर बोले, “मुझे तुरंत वो लाकर दो.”
सेवक के पास बचने का कोई रास्ता नहीं था, सेवक ने अकबर को सच बता दिया कि वो अंगूठी टूट गई है. यह सुनकर क्रोध में अकबर ने उस सेवक को फांसी की सजा सुना दी.
अगले दिन इस घटना के बारे में जब सभा में जिक्र हुआ तो बीरबल ने इस बात का विरोध किया, बीरबल बोले कि झूठ हर व्यक्ति कभी-न-कभी बोलता ही है. किसी के झूठ बोलने से अगर कुछ बुरा या गलत नहीं होता, तो झूठ माफ़ करने योग्य होता हैं. अकबर उसी समय बीरबल पर भड़क गए और उन्होंने सभा से बीरबल को निकाल दिया.
बीरबल ने ठान ली कि वो इस बात को साबित करके रहेंगे कि हर व्यक्ति अपने जीवन में कभी-न-कभी झूठ बोलता है. उन्होंने जौहरी से सोने की गेहूं जैसी दिखने वाली बाली बनवाई और उसे लेकर अगले दिन अकबर की सभा में पहुंच गए.
अकबर ने जैसे ही बीरबल को सभा में देखा, तो पूछा कि अब तुम यहां क्यों आए हो?
बीरबल बोले, “जहांपनाह आज मैं आपको ऐसी चीज़ दिखाऊंगा, जो किसी ने कभी नहीं देखा होगा.”
अकबर और सभी दरबारियों की उत्सुकता बढ़ गई और अकबर ने बीरबल को अपनी बात कहने की अनुमति दे दी.
बीरबल बोले, “कल रात मेरे घर में एक सिद्ध पुरुष आये थे,उन्होंने मुझे यह सोने से बनी गेहूं की बाली दी है और कहा कि इसे जिस भी खेत में लगाओगे, वहां सोने की फसल उगेगी. अब इसे लगाने के लिए मुझे आपके राज्य में थोड़ी-सी जमीन चाहिए. अकबर ने कहा, चलो हम तुम्हें जमीन दिला देते हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि पूरा राज दरबार यह चमत्कार देखे. बीरबल ने अकबर की बात लिया और पूरे राज दरबार को लेकर खेत की ओर चल पड़ा.
खेत में पहुंचकर बीरबल ने कहा कि इस सोने से बनी गेहूं की बाली से फसल उसी के हाथ से उगेगी, जिसने जीवन में कभी झूठ न बोला हो.
बीरबल की बात सुनकर सभी राजदरबारी खामोश हो गए और कोई भी गेहूं की बाली लगाने के लिए तैयार नहीं हुआ.
बीरबल बोले, “जहांपनाह अब आप ही इस बाली को खेत में बो दीजिये.” बीरबल की बात सुनकर उन्होंने कहा, “बचपन में मैंने भी कई झूठ बोले हैं, तो मैं इसे कैसे लगा सकता हूं.” इतना कहते ही बादशाह अकबर को यह बात समझ आ गई कि बीरबल सही कह रहे थे कि इस दुनिया में कभी-न-कभी सभी झूठ बोलते हैं. इस के बाद अकबर उस सेवक की फांसी की सजा को रोक देते हैं.