अजीबोंगरीब ईनाम Akbar Birbal Story

अजीबोंगरीब  ईनाम

ये कहानी उस समय की हैं जब अकबर और बीरबल पहली बार मिले थे. उस समय बीरबल का नाम बीरबल नहीं था, उनको सभी महेशदास के नाम से जानते थे. 


अजीबोंगरीब  ईनाम

एक दिन अकबर अपने राज्य में घूम रहे थे कि एक चोर ने उनकी अंगूठी चुरा ली, तभी महेश दास ने उस चोर को पकड़ लिया और बादशाह सलामत की अंगूठी वापस दिला दी. अकबर उस व्यक्ति की बहादुरी से बहुत ख़ुश हुए और उसे अपने दरबार में उचित ईनाम देने के लिए बुलाया साथ ही साथ अपनी अंगूठी उसे निशानी के तौर पर दे दिया. 

कई दिन बीत गए महेशदास ने एक दिन सोचा क्यों न एक बार बादशाह अकबर से मुलाक़ात किया जाये और उन्होंने मुझे बुलाया भी था. यही सोच कर वो अगले दिन राजदरबार में अकबर से मिलने ले किये चल दिया. 

राजमहल के क़िले पर पहुंचकर उसने देखा की अंदर जाने के लिए बहुत लम्बी लाइन लगी हुई हैं और मुख्य द्वारपाल लोगों को अंदर जाने की अनुमति देने के बदले में उनसे कुछ न कुछ रिश्वत ले रहा था. महेशदास को ये बहुत ही उनुचित लगा और उन्होंने उसे दंड दिलाने का निश्चय किया. इसके बाद जब उनकी बारी  आई तो उन्होंने उस द्वारपाल को बादशाह अकबर की दी हुई अंगूठी दिखाई और कहा, मुझे बादशाह ने ईनाम लेने के लिए बुलाया हैं इसलिए आप मुझे अंदर जाने की अनुमति दे दीजिये. ईनाम का नाम सुनकर उस द्वारपाल के मन में लालच आ गया और उसने कहा, एक शर्त पर मैं तुम्हें अंदर जाने दूंगा अगर तुम वादा करो की अंदर तुम्हें जो भी ईनाम मिलेगा  उसका आधा हिस्सा तुम मुझे दोगे. व्यकित मान गया और इसके बाद वो सीधा अकबर के दरबार में पहुँच गया. अकबर ने तुरंत उस व्यक्ति को पहचान लिया और उससे पूछा, कैसे हो महेशदास? बहुत दिनों बाद दिखाई दिए? उस व्यक्ति ने बादशाह के को सलाम किया और कहा, जहाँपन मैं आज अपना  ईनाम लेने आया हूँ. बादशाह ने काह, तो बताओ क्या चाहिए ईनाम में? महेश दास ने बोला जहाँपन मुझे अपने पीठ पर 200 कोड़े चाहिए. उसकी बात सुनकर सभी दरबार हैरान हो गये, सोचने लगे की ये कैसा पागल हैं जिसे ईनाम में पैसे, जेवरात नहीं कोड़े चाहिए? अकबर भी परेशान हो गए, उन्होंने उससे इसके पीछे की वजह पूछी तब महेश दास ने कहा, जहाँपन आज जब मैं आप से मिलने आ रहा था तभी द्वारा के द्वारपाल ने मुझे अंदर जाने की अनुमति देने के बदले मुझसे ईनाम का आधा हिस्सा लेने की शर्त रखी थीं. इसलिए मैंने अपने लिए 200 कोड़े मांगे हैं. अकबर ने उस द्वारपपाल को बुलवाया और उसे 200 कोड़े खाने का हुक्कम दिया और महेशदास को खूब सारा धन दिया. इसी के साथ साथ उन्होंने उनका नाम महेशदास से बीरबल रख दिया.