मैं पिछले एक साल से हर रोज आपसे यही पूछने के लिए अपना पूरा समय यही प्लेटफार्म पर ही निकाल देता हूँ,
लेकिन आप लोग मेरी बातों का सवालों का जवाब क्यों नहीं देते? 25 जून 2010 में दिल्ली से देहरादून जा रहे शतब्दी एक्सप्रेस में बोगी नंबर 10 में सीट नंबर 13 जो आर ए सी अलॉट हुई थी उसमें लड़की सुधा का पता या कोई कांटेक्ट नंबर क्यों नहीं देते? आप मेरी समस्या को समझने की कोशिश क्यों नहीं करते? मैं बहुत परेशान हूँ मुझे उस लड़की का कांटेक्ट दे दीजिये प्लीज़ इट इज़ वैरी अरजेंट. शेखर इन्क्वेरी सेक्शन पर हर रोज़ आ कर उन्हें यही बात समझने की कोशिश करता था, लेकिन सब व्यर्थ था. वहां पर कोई भी ऐसा न था जो उसकी समस्या को समझ पाता तो वहीं दूसरी तरफ राइट टू प्राइवेसी के उलंघन का भी तो ख़तरा था.
एक दिन आख़िरकार शेखर ने उस ऑफिस में काम करने वाले चपरासी के जेब में धीरे से 200 रुपए का नोट डाल दिया और उसकी मदद से उसके पास अब सुधा का कांटेक्ट मिल गया, लेकिन इस एक कांटेक्ट को पाने में उसके ज़िंदगी के एक साल से ज़्यादा समय यूँ ही निकल गए...
उस कांटेक्ट में उसे एक नंबर मिला, उसने रात को क़रीब 8 बजे उसपर कॉल किया... पहले तो किसी ने उसके कॉल का रेस्पोंस नहीं दिया लेकिन उसने एक और बार लगाया और कुछ देर बाद उसे फ़ोन के दूसरी तरफ एक औरत की आवाज़ सुनाई दी. हेलो! लेडी हार्डिंग नर्सिंग होम एंड हॉस्टल से मैं स्वाति बोल रही हूँ. आप कौन? ये सुनकर शेखर का मन उदास हो गया और उसने फ़ोन काट दिया. जिस नंबर को वो सुधा का नंबर समझ रहा था, वो तो उसका था ही नहीं. वो सोचने लगा शायद उस चपरासी ने कोई ग़लत फाइल दे दी. उसने उसको गाली भी दे दी. जब इंसान बहुत ज़्यादा परेशान होता है तो वो न जाने कब हालातों और परेशानियों से इतना टूट जाता हैं कि उसका भरोसा सबसे उठने लगता हैं. उसने कुछ देर बाद फिर से फ़ोन मिलाया, इस बार फ़ोन के दूसरी तरफ वहीं आवाज़ सुनाई दी जो उसने आज से करीब एक डेढ़ साल पहले देहरादून से दिल्ली रही ट्रेन के बोगी नंबर 10 के उस सीट नंबर 13 के पास पहली बार सुनी थी.
उस कांटेक्ट में उसे एक नंबर मिला, उसने रात को क़रीब 8 बजे उसपर कॉल किया... पहले तो किसी ने उसके कॉल का रेस्पोंस नहीं दिया लेकिन उसने एक और बार लगाया और कुछ देर बाद उसे फ़ोन के दूसरी तरफ एक औरत की आवाज़ सुनाई दी. हेलो! लेडी हार्डिंग नर्सिंग होम एंड हॉस्टल से मैं स्वाति बोल रही हूँ. आप कौन? ये सुनकर शेखर का मन उदास हो गया और उसने फ़ोन काट दिया. जिस नंबर को वो सुधा का नंबर समझ रहा था, वो तो उसका था ही नहीं. वो सोचने लगा शायद उस चपरासी ने कोई ग़लत फाइल दे दी. उसने उसको गाली भी दे दी. जब इंसान बहुत ज़्यादा परेशान होता है तो वो न जाने कब हालातों और परेशानियों से इतना टूट जाता हैं कि उसका भरोसा सबसे उठने लगता हैं. उसने कुछ देर बाद फिर से फ़ोन मिलाया, इस बार फ़ोन के दूसरी तरफ वहीं आवाज़ सुनाई दी जो उसने आज से करीब एक डेढ़ साल पहले देहरादून से दिल्ली रही ट्रेन के बोगी नंबर 10 के उस सीट नंबर 13 के पास पहली बार सुनी थी. हेलो! कौन? फोन के दूसरी तरफ से सुधा ने पूछा. एक पल के लिए शेखर की धड़कने तेज़ हो गई. उसने अपनी साँसों पर काबू पाते हुए कहा, मैं शेखर बोल रहा हूँ. सुधा एक पल के लिए हैरान हो गयी कि आज इतने दिनों बाद अचानक से शेखर की कॉल? वो यही सोचने लगी. हेलो! हेलो आर यू स्टिल ऑन कॉल? शेखर ने पूछा. Yeah ofcourse..
सुधा वो ट्रेन में मेरी डायरी छूट गई थी, क्या वो तुम्हें मिली थी? उसने घबराते हुए पूछा. हाँ वो मेरे पास ही हैं, सुधा ने तुरंत जवाब दिया. सुधा की बात सुनते ही मानों शेखर ख़ुशी से झूमने लगा. ऐसा लगा कि उसे कोई कुबेर का खज़ाना मिल गया हो. थैंक गॉड. मुझे विश्वास था कि हो न हो ये डायरी तुम्हारे पास ही होगी. अच्छा अभी तुम दिल्ली में हो या.... नहीं मैं दिल्ली में अभी नहीं हूँ. मैं हरिद्वार में अपने घर हूँ सुधा ने बताया. अच्छा तो क्या वो डायरी अभी तुम्हारे पास में हैं? सलामत तो हैं न वो? शेखर बार बार उसी डायरी के बारे में पूछा रहा था. अरे बाबा वो डायरी बिलकुल सेफ हैं. मैं परसो दिल्ली आ रही हूँ, तुम आके ले जाना. शेखर ने सुधा को थैंक्स कहा और दोनों तरफ से कॉल डिस्कनेक्ट हो गई. रात के करीब साढ़े नौ बज रहे थे. घड़ी की सुइयां टिक टिक करके चल रही थी, शेखर किचन में गया और चाय बनानी शुरू की. शेखर ने जेब से सिगरेट निकालकर उसे जलाई और किचन के पास ही बैठकर पीने लगा. कुछ ही देर में चाय ने अपनी आख़िरी उबाल मरी और उसने तुरंत अपने एक कप में छान लिया और उसे लेकर अपने कमरे में वापस आ गया. अपने बेड के पास रखे टेबल पर उसने चाय रखी और किताबों से भरी अलमारी से उसने Emily Brontë द्वारा लिखी किताब Wuthering Heights निकली और पेज नंबर 123 खोली.उसने किताब को पढ़ना शुरू किया,साथ ही साथ चाय की मिठास उसके होंठों से होते हुए गले में उतर रही थी.वो किताब पढ़ ही रहा था कि अचानक से किताबों के बीच से एक बंद लिफ़ाफा उसके बेड आ गिरा. उसका ध्यान Wuthering Heights से हटके उस लिफ़ाफे पर अटक गया. उसने जल्दी से उस लिफाफे को उठाया और उसे धीरे धीरे खोलने लगा.
उस लिफ़ाफे के ऊपर लिखा था, "फॉर माई डिअर लव मीरा.."
अचानक उसने वो लिफ़ाफा इस अंदाज़ से दूर फेंक दिया जैसे कोई ख़राब कागज़ का टुकड़ा हो और एक बार फिर से नॉवेल पढ़ने लगा. कुछ देर बाद अचानक कमरे की खिड़की से ज़ोरदार हवा का झोंका आया और उसने एक बार फिर उस लिफ़ाफे को उड़ाकर शेखर के पास ले आया. शेखर ने इस बार बहुत हिम्मत करके उस लिफ़ाफे को खोला. उसमें दो तस्वीरें थी.... वो उन तस्वीरों को देखता ही रह गया. वो दोनों तस्वीरें मीरा की थी.... तस्वीरों को देखते ही अचानक एक बार फिर उसका पूरा अतीत उसके सामने सीसे की तरह आ खड़ा हुआ. जिसे वो पिछले 5 सालों से भाग रहा था, एक बार फिर वो अतीत उसके सामने था. उसने तस्वीर को गौर से देखा, उसके पुराने कालिंदीकुंज वाले फ़्लैट की थी. जब पहली बार मीरा उसके फ़्लैट पर आई थी. मीरा से शेखर की मुलाक़ात नोएडा में हुई थी. शेखर अपने ऑफिस के लिए लेट हो रहा था और इसी वजह से वो दिल्ली मेट्रो से नोएडा के लिए अपनी ही धुन में निकल के जा रहा था. स्टेशन से निकलते ही उसने एक ऑटो रिज़र्व किया और सेक्टर 15 से सेक्टर 9 के लिए ऑटो में बैठने ही वाला था कि अचानक उसने देखा कि कोई उसे ज़ोर ज़ोर से आवज़ा दिए जा रहा था. वो मिस्टर! हेलो! वो सूट वाले! पता नहीं किन किन शब्दों में. वो चौंककर पीछे मुड़ा तो देखा एक तकरीबन 5.7 फ़ीट हाइट की एक हल्की सावली लड़की को देखा जा अभी भी उसे ही बुला रही थी. उसकी आँखे हल्की हल्की ग्रे थी और उसकेबाल कर्ली थे. उसने पीछे मुड़कर बोला, यस व्हॉट हैपेंड? यू फॉरगॉट यौर बुक देयर इन द मेट्रो, लड़की ने कहा. ओह शेखर ने अपनी भूल पर थोड़ी से गुस्सा दिखाई और उस लड़की को फॉमर्ली थैंक्यू कहा और वापस अपने ऑटो के पास मुड़ा तो वो हैरान रहा गया. उसने देखा कि वही लड़की पहले से ऑटो में बैठ हुई थी,अरे भैया किसका इंतज़ार कर रहे हैं हैं? सेक्टर 9 चलिए न? लड़की ने तेज़ी से कहा. अरे मैडम आप समझ क्यों नहीं रही हैं? इन भाई साहब ने इसे पहले ही रिज़र्व किया हुआ है. ऑटो ड्राइवर ने शेखर की तरफ इशारा करते हुए कहा. अरे कोई नहीं भैया एक काम कीजिये मैडम को भी सेक्टर 9 जाना है और मुझे भी तो हम दोनों को ले चलिए अगर मैडम को कोई ऐतराज़ न हो.
ठीक हैं फिर चाहिए साहब. ऑटो वाले ने गाड़ी शुरू किया और सेक्टर 15 से 9 की तरफ निकाल लिया. पूरे रास्ते दोनों ऑटो के दूसरे साइड देखते रहे. करीब 10 मिनट बाद ऑटो वालों ने पूछा, मैडम कितने नंबर बिल्डिंग में जाना हैं? C-143 पर जाना हैं मीरा ने कहा. शेखर ने हैरानी से देखा लेकिन कुछ नहीं कहा, कुछ ही देर में ऑटो वाले ने C-143 के बाहर गाडी लगा दिया, लीजिये मैडम आ गया. मीरा ने ऑटो वाले को पैसे दिए और वहां से चली गई. कुछ देर बाद शेखर ने उसे बाकी के पैसे दिए और वो भी उसी बिल्डिंग के बाहर उतर गया. बिल्डिंग के गेट पर पहुँचते ही गॉर्ड ने सलाम किया, शेखर ने हल्की सी मुस्कान के साथ उस सलाम को एक्सेप्ट किया और आगे बढ़ गया. रिसेप्शन से होते हुए वो अपने कैबिन में पहुँच गया. कुछ देर बाद रिसेप्शनिस्ट ने आकर बताया, सर वो इंटरव्यू के लिए वो लड़की आ गयी हैं. ओके! सेंड हर इन साइड. मिस मीरा आपका नंबर आ गया, दिस वे.
कैबिने के बाहर पहुँच कर, मीरा ने कहा, मे आई कम इन सर. Yeah Sure! शेखर ने अंदर से कमांड दिया. कैबिन का दरवाज़ा खुला, मीरा अंदर आई. अंदर आते ही शेखर को देखकर वो हैरान हो गयी. सो यू आर फॉर द जॉब? शेखर ने पूछा. यस सर, मीरा ने जवाब दिया. ओके हैवे अ सीट प्लीज. यू वांट टी और कॉफ़ी? नो थैंक्स सर. व्हाट्स योर गुड नेम मिस..? मीरा, मीरा सिंह सर. सो मिस मीरा आर यू अ फ्रेशर? यस सर. ओके नो प्रॉब्लम. कुछ देर इंटरव्यू ख़त्म हुआ और शेखर ने रिपोर्ट अपने से सीनियर को दे दी. अगले दिन से आपकी जोइनिंग हैं और बाकी का डिटेल्स आपको रिसेप्शन पर बैठी निधि बता देगी. अब तुम जा सकती हो. मीरा बाहर आ गई और वापस घर चली गई.
शाम को मीरा को ऑफर लेटर वाया मेल मिल गया और वो अगले दिन से जोइनिंग की तैयारी करने लगी. इन्हीं यादों में खोये हुए शेखर की न जाने कब आँख लग गई और वो सो गया उसे इस बात का पता नहीं चला. सुबह के करीब दस बज रहे थे, उसने फ़ोन में देखा तो 10 मिसकॉल थी. वही जाना पहचाना नंबर, जिससे वो कल रात बात किया था. उसने कॉल बैक किया, हेलो! फोन की दूसरी तरफ से सुधा ने कहा. सुधा तुमने कॉल किया था? हां मैंने ये बताने के लिए कॉल किया था कि मैं आज शाम को ही दिल्ली पहुँच जाउंगी, तो क्या तुम मुझे स्टेशन पर मिल सकते हो? बिल्कुल मैं आ जाऊंगा, टाइमिंग क्या हाँ? रात के 7 बजे, नई दिल्ली आ जाना. ओके आई विल कम ओवर देयर ऑन टाइम.
शेखर ने अपनी किताब वही बेड पर छोड़ दिया और सीधा किचन में गया और फ्रिज में से दूध का दूसरा पैकेट निकाला और चाय बनाने लगा. इधर चाय बन रही थी और उधर शेखर बालकनी में खड़े होकर अपने टूथ ब्रश को मुंह में दबाये हुए सामने पार्क में खेल रहे बच्चों को देख रहा था. तभी डोर बेल बजी शेखर ने दौड़ कर दरवाज़ा खोला तो सामने न्यूज़ पेपर वाले भैया खड़े थे, अरे शेखर भैया आप कहाँ रहते हैं आज कल? कई दिनों ने फ़्लैट पर नहीं दिखे? अरे अब क्या बताया भैया! कुछ ज़िंदगी के उधेड़बुन में ही लगा था. ख़ैर आपके पैसे मेरे पास तैयार हैं, एक मिनट रुकिए मैं अभी लेकर आता हूँ. ये लीजिये 200 रुपए, चाय पिएंगे? नहीं भैया आप पीजिये, इतना कहकर वो वहां से चले गए. उसने चाय लेकर वापस बालकनी में आ गया, उसने बालकनी में रखे चेयर पर बैठकर चाय पीने लगा.
उसने आज का अख़बार निकाला और उसे पढ़ने लगा. धीरे धीरे उसने दिन का टाइम बिताया और शाम के 6 बजते ही वो नई दिल्ली की तरफ रवाना हो गया. स्टेशन पर पहुँचने पर पता चला कि ट्रेन अगले कुछ ही मिनटों में ही आने वाला हैं. ट्रेन आ गई कुछ देर बाद उसने सुधा को उस भीड़ से लेकर बाहर वापस आ गया. तो अब तुम कहा जाओगी? अगर तुम चाहो तो आज रात मेरे फ़्लैट पर रह सकती हो और सुबह चली जाना. सुधा ने अपने भारी भरकम सामने को देखते हुए उसने हां में सर हिला दिया और दोनों वहां से शेखर के फ़्लैट पर आ गए. तुम बेड रूम के दूसरे वाले बेड पर जाकर अपना सामान रख लो और वही साथ में अटैच वॉशरूम हैं तुम मुंह हाथ दो लो, मैं चाय बना देता हूँ. थोड़ी देर बाद शेखर ट्रे में चाय लिए नॉक करते हुए कमरे में आया, ये लो चाय पीओ उसने एक कप सुधा की ओर बढ़ाते हुए कहा.
वाओ क्या चाय बनाई है? सुधा ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा. वो डायरी कहाँ? शेखर ने कहा. अरे आराम से चाय तो ख़त्म कर लूँ? सुधा ने हँसते हुए कहा. वैसे ये मीरा कौन हैं? सुधा ने बनावटी तरीके से पूछा. ओह तो आपने डायरी पढ़ ली? शेखर ने भी उसी अंदाज़ में कहा. हां और करती भी क्या? तुम तो वहीं सीट के आधे हिस्से में छोड़ कर गए थे. वैसे तुमने इस डायरी में मीरा के बारे जितना ज़िक्र किया हैं उससे तो लगता हैं वो बहुत ही ख़ूबसूरत रही होगी. अगर तुम मेरी एक बात मानों तो एक सलाह दूँ. तुम इसे पब्लिश कराओ बहुत ही अच्छा रहेगा. ये लो तुम्हारी डायरी, वैसे एक बात पूंछू? मीरा का क्या हुआ? कभी मिलें नहीं फिर? मिली थी वो पिछले साल. अच्छा क्या कहा उसने? तुमने उसे वापस आने के लिए नहीं कहा? कैसे कहता? वो अपने पति के साथ जो आयी थी.... शेखर ने इस अंदाज़ से कहा मानों उसका दिल जो अभी तक टूटा हुआ उसके अंदर सिसक रहा था, वो बिखर गया. जैसे रेत के महल हवाओं के झोंकों से बिखर जाते हैं.
उसने सुधा से अपनी गीली आँखें छुपा ली.
अच्छा शेखर मुझे तुमसे कुछ कहना था, सुधा ने उसकी तरफ देखते हुए कहा. विल यू मैरी में? शेखर स्तब्ध रह गया, उसे समझ नहीं आया की वो क्या कहे. अच्छा डिनर में क्या खाओगी? शेखर ने किचन की तरफ बढ़ते हुए कहा. रात के करीब 10 बजे शेखर ने किचन से पनीर की सब्ज़ी और चावल बनाये और उसे हॉल में लगे डाइनिंग टेबल पर साजा दी. उसने सुधा को आवाज़ दी सुधा भी कमरे से बाहर आ गई. अरे तुम मुझे बुला लेते मैं हेल्प कर देती. अरे कोई नहीं इसमें क्या हेल्प? डिनर करते समय एक बार फिर सुधा ने शेखर से कहा, तुमने जवाब नहीं दिया? शेखर ने फिर कुछ नहीं कहा. सुधा के बहुत कहने पर शेखर ने कहा, " सुधा तुम्हें इस शेखर से प्रेम नहीं हुआ हैं, तुम उस शेखर से प्रेम कर बैठी हो जिसने ये डायरी लिखी हैं. इसलिए तुम्हारे इस सवाल का जवाब मेरे पास नहीं हैं. लेकिन यदि तुम कभी सच में इस डायरी के पन्नों से अलग इस शेखर से पूछोगी तो शायद वो कह दे." सुधा को ये बात बहुत अच्छी लगी और उसने एक बार फिर से अपने दिल की सभी फीलिंग शेखर से कहीं.
शेखर ने इस बार ज़्यादा कुछ न सोचते हुए उसकी इस बात के लिए हाँ में सर हिला दिया. दोनों ने इसके एक हफ़्ते बाद शादी कर ली और सुधा की बात मानते हुए उसने अपनी किताब भी पब्लिश करवाई. इसके बाद शेखर ने कई और किताबें लिखी और दोनों एक साथ नैनीताल में अपने छोटे से आशियाने में रहते हैं.