भगवान शिव की पूजा में केतकी (केवड़े) के फूल का उपयोग क्यों नहीं करते हैं?

हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं के पूजा-पाठ में बहुत सारे सामग्री की जरूरत और विधि विधान का पालन किया जाता हैं. साथ ही साथ कई सारे सुगन्धित पुष्पों का भी प्रयोग किया जाता हैं. लेकिन क्या आपको पता हैं कि भगवान शिव की पूजा में केतकी यानी केवड़े के फूलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए ये पूर्णतः वर्जित हैं. इसके पीछे एक बहुत ही अनोखी पौराणिक कहानी जुड़ी हुई हैं. जिसके अनुसार भगवान शिव ने स्वयं केतकी के पुष्प का परित्याग किया था. 


ये कहानी है सतयुग की जब एक दिन भगवान श्री हरि विष्णु और ब्रह्मा एक दूसरे से इस बात को लेकर बहस करने लगे कि उन दोनों में से सबसे श्रेष्ठ कौन हैं? चूँकि ब्रह्मा जी सृष्टि के रचयिता हैं इसलिए उन्होंने खुद को श्रेष्ठ बताया. तो वहीं दूसरी तरफ भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार होने के नाते अपने को श्रेष्ठ कहने लगे. 

इसी बीच अचानक एक ज्योतिप्रकाश वहाँ प्रकाशित हुई और उसमें से एक दिव्य स्वर सुनाई दी. इस स्वर ने कहा, जो भी तुम दोनों में से मेरे अंतिम छोर का पता लगा लेगा वहीं सर्वश्रेष्ठ कहलाएगा.  

इसके बाद दोनों लोगों ने छोर का पता लगाने के लिए ऊपर और नीचे की ओर चल दिए. विष्णु जी ऊपर आकाश की ओर और ब्रह्मा जी नीचे धरती और पाताल लोक की और चल दिए. कई दिनों तक दोनों लोग उस प्रकाश के अंतिम छोर का पता लगाते रहे. लेकिन किसी को भी उसके अंतिम छोर का पता नहीं चला. अंत में श्री हरिविष्णु हार मानकर वापस आ गए लेकिन ब्रह्मा जी अभी तक वापस नहीं लौटे, वो हार नहीं मानना चाहते थे इसलिए उन्होंने वहाँ पर एक केतकी के पुष्प के साथ मिलकर योजना बनाई और वापस आकर झूठ कह दिया की मैंने प्रकाश पुंज का अंतिम छोर ढूँढ लिया है और इसकी साक्षी ये केतकी का पुष्प हैं. उसने भी योजना के अनुसार हां कर दिया. तभी वो ज्योतिप्रकाश ग़ायब हो गई और भगवान शिव स्वयं वहाँ पर प्रकट हो गए और उन्होंने ब्रह्मा जी के झूठ का खुलासा किया और भगवान् विष्णु को श्रेष्ठ घोषित कर दिया और उस केतकी के पुष्प को अपने पूजा विधान से वर्जित कर दिया, उन्होंने कहा, मेरी पूजा विधान में इस पुष्प का उपयोग करने वाले को पाप मिलेगा और उसकी पूजा कभी सम्पन्न नहीं होगी.