हमारे पुराणों में कई सारी कहानी मिलती हैं. इतने सारे पुराण हैं और सबका अपना अपना महत्व है. इसी में से एक हैं शिव महापुराण जिसमें भगवान शिव के बारे में कई सारे रहस्यों और कहानियों का उल्लेख मिलता हैं. इसी में से एक कहानी ये भी हैं कि आख़िर भगवान शंकर को शंख से जल क्यों नहीं चढ़ाया जाता हैं? इसके पीछे क्या रहस्य हैं?
तो इसका उल्लेख शिव महापुराण में वर्णित एक कथा में छिपा हुआ है और वो कथा इस प्रकार हैं...
दैत्यराज दंभ के कोई संतान नहीं थी इसलिए उसने उसने श्री हरि विष्णु की घोर तपस्या की और उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने उस वरदान देने के लिए आये. उसने भगवान विष्णु से एक अत्यंत शक्तिशाली और अजेय पुत्र की कामना की. भगवान विष्णु ने उसकी मनोकामना पूरी कर दी और उसके घर शंखचूड़ नाम का पुत्र पैदा हुआ. जब वो बड़ा हुआ तो उसने अपने बल से तीनों लोको में आतंक मचा दिया. इसके बाद सभी देवता विष्णु के पास गए लेकिन विष्णु की कृप्या से उसका जन्म हुआ था अतः भगवान विष्णु ने उन सभी को महादेव से सहायता लेने के लिए भेज दिया.
भगवान शंकर ने देवताओं की समस्या का समाधान करने के लिए शंखचूड़ के पास गए और भयंकर युद्ध हुआ उन दोनों के बीच और उन्होंने उसका वध कर दिया और वापस कैलाश आ गए. उसके मरने के बाद उसके राख़ से एक एक शंख की उत्पत्ति हुई और उसको भगवान विष्णु ने अपने हाथों में धारण कर लिया. चूँकि भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध किया था इसलिए शंख जल शिवलिंग पर नहीं चढ़ाया जाता.