एक बार राजा विक्रमादित्य अपने राज दरबार में बैठे थे कि एक ब्राह्मण का आगमन हुआ. राजा ने उस अतिथि ब्राह्मण की खूब सेवा की. उसके बाद उस ब्राह्मण ने कहा, '' हे राजन! आपके राज्य में देवी लक्ष्मी की असीम कृपा होगी अगर आप एक सुन्दर और भव्य महल का निर्माण कराकर उसमें रहें तो. राजा विक्रम को ये बात अच्छी लगी और उन्होंने जनता और राज्य की भलाई के लिए एक बहुत ही सुंदर महल बनवाया.
जो हर प्रकार के हीरे-जवाहरातों से चमक रहा था. उसे देखने के लिए राजा अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ उस महल को देखने पहुंचे, साथ में उनका राजपुरोहित भी था. राजा विक्रम के साथ-साथ राजपुरोहित भी मंत्रमुग्ध हो गए. अचानक उनके मुँह से निकल गया कि काश ये महल मुहे मिल जाता. राजा ने उनकी बात सुन ली और उन्हें ये महल दान दे दिया. इस बात को राजपुरोहित ने अपनी पत्नी को बताया, पहले तो उसे विश्वास नहीं हुआ लेकिन कई अबार कहने के बाद उसे उनकी बात पर विश्वास हो गया.
उसी रात वो दोनों वहाँ रहने के लिए आये. रात में जब वो दोनों सो रहे थे तभी महल में एक चमत्कारी प्रकाश पुंज दिखाई दी साथ ही साथ महल में मनमोहक सुगंध फैल गई. एक विचित्र सी आवाज़ उनको सुनाई दी, मैं देवी लक्ष्मी हूँ और आपके भाग्य से इस घर में आई हूँ. दोनों लोग डर गए और महल छोड़ कर अपने झोपड़े में आ गए. पुरोहित की पत्नी कहने लगी जरूर ही उस महल में कोई चुड़लै हैं जिसकी वजह से राजा ने आपको ये महल धन में दे दिया.
अगली सुबह राजपुरोहित राजा विक्रमादित्य के पास जाकर वो महल वापस लेने की विनती की. लेकिन दान में दी गई वस्तु वापस कैसे लेते इसलिए उन्होंने उसे खरीद लिया. अब राजा वहाँ पर रहने लगे. एक रात फिर माँ लक्ष्मी आई. राजा ने उनको प्रणाम किया और उनके आग्रह करने पर उन्होंने अपने राज्य की जनता के लिए राजा ने कहा माँ आप मेरे राज्य में धन की वर्षा कर दीजिये जिससे लोगों का भला हो जाये और कोई भी भूखा न रहे. इसके बाद देवी लक्ष्मी वहाँ से चली गयी.
सुबह राजा के महल के बाहर पूरी प्रजा धन वर्षा से प्राप्त धन-सम्पदा को विक्रमादित्य को भेंट करने के लिए आई हुई थी. राजा ने उनसे कहा, ये सब आप सभी लोग रखिये और कोई भी किसी दूसरे के हिस्सों का धन नहीं लेगा. सारी जनता ने राजा विक्रमादित्य की जय जय कार करने लगी.