महाभारत का धर्मयुद्ध समाप्त हुआ और युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया. कुछ सालों तक उन्होंने राज्य किया, उसके बाद उन्होंने अर्जुन के पौत्र और अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को हस्तिनापुर का राजा बनाकर स्वर्ग की और चल दिए. राजा परीक्षित के राजा बनने के बाद धीरे-धीरे द्वापर युग अपने अंतिम चरण में आ गया. धर्म का लोप होना शुरू हो गया और उसके बाद कलयुग जल्दी से जल्दी धरती लोक में आने की कोशिश करने लगा.
एक दिन सम्राट परीक्षित शिकार खेलने गए तब वहीं पर जंगल में वो राह भटक गए और अपने राज्य की सीमा से दूर निकल आये. उधर कलयुग भी परीक्षित के राज में घुसने की योजना बना रहा था लेकिन सफल नहीं हो पाया क्योंकि राज्य में हर तरफ धर्म का वास था. लेकिन जब उसने परीक्षित को देखा तो उसने जल्दी से उनके स्वर्ण मुकुट में अपना आश्रय ले लिया. राजा परीक्षित को प्यास लगने लगी वो पानी के तलाश में भटकने लगे तभी उन्हें एक ऋषि का आश्रम दिखाई दिया जब वो वहाँ पहुंचें तब ऋषि समाधी में लीन. कलयुग ने राजा की मति भ्रष्ट कर दी और उन्होंने वहाँ पर मृत पड़े साँप को उठाकर उनके गले में लपेट दिया. कुछ समय बाद ऋषि जब समादि से जागे तब उन्होंने श्राप दे दिया. जिस किसी ने भी किया है उसे आज से 21 दिन बाद ये साँप उसे ही जीवित होकर काट लेगा.
राजा परीक्षित अपने साथ राज्य में कलयुग को भी लेकर आ गए. धीरे-धीरे राज्य में अधर्म बढ़ने लगा. इधर ऋषि का श्राप सत्य होने वाला था और 21 दिन बाद तक्षक नाग ने राजा परीक्षित को काट कर अपना सदियों पुराना प्रतिशोद ले लिया. जो दुश्मनी उसके और अर्जुन के बीच में थी वो उसने अर्जुन के वंश को काट कर लिया. इसके बाद परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने नाग भस्म यज्ञ किया और उन्होंने समस्त लोकों के सभी सर्पों और नागों का विनाश करने का प्रण लिया.
इस तरह से कलयुग का आरम्भ हुआ और अभी सिर्फ इसका 5118 वर्ष ही बीता है. कलयुग जब अपने चरम पर होगा तब अधर्म सबसे ज्यादा बढ़ जाएगा. लोग बहुत जल्दी ही मरने लगेंगे.