महाभारत युद्ध एक ऐसा धर्मयुद्ध था जिसमें कई सारे महाबली योद्धाओं ने भाग लिया. इस युद्ध में दोनों तरह से कई पूरे भारतवर्ष से कई सारे राजाओं ने भाग लिया था. पांडवों की तरफ से 7 अक्षौहिणी सेनाओं ने और करवों की तरफ से 11 अक्षौहिणी सेनाओं ने हिस्सा लिया था. ये एक ऐसा भीषण महायुद्ध था जिसमें बहुत शक्तिशाली अस्त्रों और शास्त्रों का प्रयोग भी हुआ था.
यहाँ तक की ब्रह्मास्त्र का भी उपयोग एक महाबली योद्धा ने किया था जिसका नाम था अश्वत्थामा जो की गुरू द्रोणाचार्य का पुत्र था. लेकिन क्या आपको पता है अश्वत्थामा किस देवता का अंश था? उसका जन्म कैसे हुआ था? और उसे अमरत्व का वरदान कैसे मिला था?
अश्वत्थामा का जन्म और अमर होने की कहानी
ये सब लोग जानते है कि अश्वत्थामा गुरू द्रोण का इकलौता पुत्र था और उसी की वजह से उन्हें पांडव का साथ छोड़कर दुर्योधन के पक्ष से युद्ध किया. अश्वत्थामा का जन्म गुरू द्रोण के घर हुआ था. वो भगवान शिव का अंश था. इसके पीछे भी एक कहानी छुपी है. जो इस प्रकार से है....
महृषि भरद्वाज के पुत्र द्रोण और ऋषि शारतवन की पुत्री कृति का विवाह हुआ. इसके बाद दोनों ने भगवान शंकर की उपासना करके उन्हें प्रसन्न कर लिया और उनसे उन्हीं की तरह तेजवान पुत्र की कामना की. इसके बाद भगवान शिव का ही एक अंश उनके घर पुत्र के रूप में जन्म लिया. इस पुत्र के मस्तक पर जन्म से ही एक दिव्य मणि लगा हुआ था जो उसे हर तरह के दैवीय अस्त्रों और हर किसी से सुरक्षा प्रदान करता था. उस बालक ने अश्व की तरह ही हिनहिया इसलिए आकाशवाणी से उसका नाम अश्वत्थामा रखा गया. गुरू द्रोण अपने इकलौते पुत्र से सवार्धिक प्रेम करते थे. लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति बहुत दैयनीय थी इसलिए वो अश्वत्थामा को बहसपण में दूध की जगह आंटे का घोल दूध बता कर देते थे और वो बालक भी उसे दूध समझकर पी जाता था. महाभारत युद्ध के अंतिम दिन जब अश्वत्थामा ब्रह्मस्त्र का प्रयोग कर देता है तब भगवान श्रीकृष्ण उसके मस्तक पर लगे उस मणि को निकाल लेते है और उसकी दिव्यता धीरे-धीरे ख़त्म होने लगती है लेकिन उसके अमरत्व का वरदान ही उसके लियए एक अभिशाप बन गया. श्री कृष्ण के कहे अनुसार कलयुग के अंत तक अश्वत्थामा इस पृथ्वी पर घूमते रहेंगे और आज भी वो अपने घायल मस्तक लो लिए इस पृथ्वी पर भटक रहे हैं और वो भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की प्रतीक्षा कर रहे है.