आप सभी को पता है जब-जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता है तब-तब भगवान स्वयं पृथ्वी पर अवतरित होते है. ऐसा श्रीमद्भगवतगीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है और समय समय पर विष्णु जी ने कई बार अवतार लेकर इस बात को सिद्ध भी किया हैं. ऐसे ही एकबार उन्होंने अपने भक्त प्रहलाद को बचाने तथा हिरण्यकशिपु नामक राक्षस राज का वध करने के लिए भी उन्होंने अवतार लिया जिसे नरसिंह अवतार कहा जाता हैं. लेकिन क्या आपको पता है भगवान के इस नरसिंह अवतार का वध कब और किसने किया?
हिरण्यकरण वन में हिरण्यकशिपु नामक एक राजा राज्य करता था जो राक्षसों का राजा था. उसने बहुत तपों सिद्धि से ब्रह्म देव को प्रसन्न कर लिया था और इसके बाद उनसे अम्र होने का वरदान माँग लिया था लेकिन ब्रह्मा जी ने वो मन कर दिया उसके बाद उनसे ब्रह्मा देव से कहा, हे भगवान आप मुझे एक ऐसा वरदान दीजिये कि, ''मुझे न कोई इंसान मर सके न देवता, न कोई नाग न कोई गंधर्व या असुर, मेरी मृत्यु न किसी अस्त्र से हो न किसी शस्त्र से, मुझे न कोई घर के अंदर मर सके न घर के बाहर, मैं न धरती पर मरू न आकाश में और मुझे कोई दिन में मार सके न रात्रि'' ब्रह्मा देव से इसप्रकार का वरदान प्राप्त करने के बाद उनसे तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया. हर जगह खुद को भगवान घोषित कर दिया और सभी लोगों ने उसके डर से उसकी पूजा करनी शुरू कर दी. लेकिन उसके पुत्र प्रहलाद जो की बहुत बड़ा विष्णु भक्त था उसने उसका विरोध किया तब हिरण्यकशिपु उस को दंड देना शुरू कर दिया उसे तरह तरह की यातने देने लगा. उसके कई बार मरने की कोशिश की लेकिन हर बार भगवान वासुदेव की कृपा से वो जीवित बच जाता. तब सभी देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उसके बाद उनसे इस दुष्ट का संहार करने का निवेदन किया लेकिन ब्रह्मा जी के वरदान का कोई काट नहीं मिल रहा था.
एक बार हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को बुलवाया जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्रदान था. होलिका प्रहलाद की बुआ थी और अपने भाई के कहने पर वो अपने भतीजे को लेकर जलती हुई अग्नि कुंड में बैठ गई. प्रहलाद ने वहीं भगवान विष्णु के नाम की जाप करनी शुरू कर दी और भगवान विष्णु के प्रताप से एक बार फिर वो जीवित बच गया तथा होलिका जलकर राख़ हो गई. तभी सेहम होली का त्यौहार मानते हैं. होली के एक दिन पहले हम होलिका दहन करते है जिसमें हम सारी बुराइयों को जला देते हैं.
अपनी बहन की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए उसने प्रहलाद को एक गर्म खम्भे से बाँध दिया तब प्रहलाद ने कहा, पिता जी महाराज इसमें भी श्रीहरि विष्णु का वास है और अगर आप मुझे इसमें बाँध देंगे तो मुझे ऐसा प्रतीत होगा की मैं अपने आराध्य के गले लग गया हूँ. हिरण्यकशिपु को और क्रोध आ गया तब उसने जैसे ही प्रहलाद का वध करने के लिए आगे बढ़ा तभी उस खम्भें को फाड़कर भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में अवतरित हुए और उसे अपने जाँघों पर लिटाकर महल के चौखट पर गोधूलि की बेला में अपने नाख़ूनों से उसका वध कर दिया. हिरण्यकशिपु का वध करने के बाद भगवान नरसिंह को बहुत क्रोध आया और उस क्रोध से ऐसा लगा रहा था की पूरी सृष्टि का विनाश हो जायेगा. चारो और हाहाकार मच गया तब सभी देवताओं ने भगवान शंकर से प्रार्थना की तब महादेव ने वीरभद्र को उन्हें रोकने के लिए भेजा लेकिन वीरभ्रद भी नरसिंह अवतार को रोकने में सक्षम नहीं हो पाए. इसके बाद भगवान शंकर ने स्वयं सर्वेश्वर अवतार लिया और भगवान नरसिंह के साथ 18 दिनों तक भीषण युद्ध हुआ और जब नरसिंह अवतार रूपी विष्णु का क्रोध शांत हुआ तब वो वापस विष्णु रूप में विलीन हो गए.