भगवान श्रीहरि विष्णु के छठें अवतार भगवान परशुराम अंत्यत क्रोधी माने जाते है. उनके क्रोध की तुलना भगवान शिव के अंशावतार ऋषि दुर्वासा से की जाती है. कहा जाता है इन्होंने क्रोध में आकर अंगराज कर्ण को श्राप दे दिया था और भगवान शिव के छोटे पुत्र गणेश का एक दांत तोड़ दिया था. यहीं नहीं इन्होंने अपनी माता का गला भी काट दिया था. पुराणों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इन्होंने इस पृथ्वी से 21 बार क्षत्रियों का सर्वनाश किया था.
तो आइये जानते है इसके पीछे की कहानी कि आखिर क्यों भगवान परशुराम ने ऐसा किया....
इनके पिता महर्षि जमदग्नि बहुत ही धार्मिक ऋषि थे. एक बार इन्हें किसी राजा ने दक्षिणा स्वरूप कामधेनु गाय भेंट किया. जिसे लेकर ये अपने आश्रम आ गए. कामधेनु गाय हर इच्छाओं की पूर्ति करने वाली गाय थी. ये समुन्द्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक थी. एक दिन हैहय वंश के राजा कार्तिवीर्य अर्जुन उनके आश्रम में आये तब ऋषि जमदग्नि ने उनका खूब आदर सत्कार किया. इससे वो बहुत प्रसन्न हुआ और जब उसे पता चला कि ये सब इस कामधेनु गाय के कारन हुआ है तब उसने महर्ष जमदग्नि से उस गाय को मांग लिया लेकिन ऋषि ने उसे देने से इंकार कर दिया तब उनसे उसने बल पूर्वक छीन लिया. जब परशुराम को इस बात की जानकारी मिली तब उन्होंने उससे युद्ध करके उसके हज़ार भुजाओं को काट कर उसका वध कर दिया. इसके बाद उसके पुत्रों ने बदले में परशुराम जी के पिता जमदग्नि और माता रेणुका का वध कर दिया. इसे देखकर वो इतने क्रोधित हो गए कि उन्होंने तुरंत हैहय वंश के क्षत्रियों का सम्पूर्ण विनाश करने का प्रण लिया और लगतार 21 बार इस पृथ्वी से दुष्ट और पापी क्षत्रियों का विनाश करके अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की थी. लेकिन 22वें बार उनकी मुलाकात भगवान विष्णु के अंशावतार भगवान राम से हुई और तब उन्होंने राम में भगवान विष्णु को पहचान लिया और उनका आशीर्वाद लेकर मलयगिरी पर्वत पर चले गए. कहा जाता है भगवान परशुराम अमर है और वो आज भी पृथ्वी पर निवास करते है तथा भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की प्रतीक्षा कर रहें है.