एक बार बादशाह अकबर और बीरबल राज्य में घूम रहे थे. तभी उन्होंने देख एक दुकान पर बहुत खूबसूरत कालीन बिक रहा था. अकबर ने बीरबर से उसका दाम पूछने को कहा. बीरबल के पूछने पर व्यापारी ने तमिल में कुछ कहा लेकिन दोनों की समझ में कुछ नहीं आया. कभी देर हो गई लेकिन उनको पता नहीं चला की वो क्या बोल रहा हैं और दोनों वापस राजमहल आ गए. अकबर ने अपने मंत्री सुखदेव को जी से कहा, आप एक ऐसे व्यक्ति को ढूढ़ कर लिए जो कई सारी भाषाएं बोल सकता हो.
अगर हमें अपने राज्य की प्रजा की भाषा ही नहीं समझ आएगी तो उसकी फ़रियाद कैसे सुनेंगे? अगले दिन सुखदेव एक ऐसे आदमी को दरबार में पेश किया जो कई सारी भाषाएँ बोल सकता था. अकबर उसे देखकर बहुत खुश हुए. सभी दरबारियों अपनी अपनी मातृभाषा में उसे बात की और उसने बहुत ही अच्छे से उनका उत्तर दिया. तब अकबर ने कहा, अच्छा आपकी मातृभाषा क्या है आप खुद ही बता दीजिये? व्यक्ति ने कहा, जहाँपना मैंने सुना है बीरबल बहुत बुद्धिमान है, हर मुश्किल से मुश्किल जवाब का उत्तर दे देते हैं. तो क्यों न बीरबल जी ही बताये? अकबर ने बीरबल से पूछा, क्यों बीरबल तुम ही बताओ. बीरबल ने कहा, जहाँपना मुझे एक दिन की मौहलत चाहिए और कल मैं आपको इस प्रश्न का उत्तर दे दूंगा. अकबर मान गए. रात में बीरबल ने अपने एक नौकर को उस व्यक्ति के कमरे में भेज दिया जो वहाँ पर जाकर अगल-अलग तरह की डरावनी आवाज़ें निकालने लगा. ये सुनकर वह बहुभाषियाँ डर गया और उसने किसी भाषा में कुछ कहा और उसके बाद फिर जाकर सो गया.
अगले दिन बीरबल ने दरबार में सबके सामने कहा, बादशाह इनकी मातृभाषा गुजरती हैं. वह व्यक्ति हरैं हो गया और उसने स्वीकार किया की जो भी बीरबल ने कहा वो सच है. अब अकबर ने पूछा, बीरबल तुमने ये कैसे किया? तब बीरबल ने कल रात की पूरी दास्ताँ कह सुनाई और कहा, महाराज जब कोई गुस्से में, आश्चर्य में, या डरा हुआ होता है तब वो अपने मातृभाषा में ही बात करता हैं.