एक बार दूर जंगल में कुछ चींटियाँ खूब सारा खाना अपने घर में ले जाकर जमा कर रही थी. वो लोग हर रोज इसी तरह से खूब मेहनत और लगन के साथ अपना काम कर रही थी. वहीं पास ही में एक टिड्डा भी रहता था वो सारा दिन उनको देखकर बस गिटार बजाता और गाना गाता था. एक दिन उसने चींटियों की रानी से पूछा आप इतनी मेहनत क्यों कर रही है? आप भी मेरी तरह आराम क्यों नहीं करती?
चींटी ने कहा, नहीं भैया सर्दियाँ आ रही है इसलिए हम अपने पूरे परिवार के खाने का इंतज़ाम कर रहे है. मैं तो कहती हूँ तुम भी खाने का इंतज़ाम कर लो ताकि सर्दियाँ आराम से कटे. लेकिन टिड्डे ने कहा नहीं मैं तो एकदम मस्त हूँ और ऐसे ही रहूँगा.
धीरे-धीरे दिन बीतने लगे एक दिन सर्दियाँ भी आ गई और सभी चींटियाँ अपने आशियाने में मज़े से रहने लगी. वो बाहर बहुत कम निकलती थी. अपना पूरा समय उसी बिल में मौज़ से काट रही थी. एक दिन रात में कोई उनके दरवाज़े पर आया. उन्होंने देखा तो पता चला कि वो तो टिड्डा था. वो ठण्ड से एकदम काँप रहा था. चींटियों ने उसे अपने घर के अंदर बुलाया और उसके बाद उन्होंने उसे खाने-पीने को दिया. तभी वहाँ पर उनकी महारानी आ गई और उन लोगों ने उससे सब कुछ बता दिया. टिड्डा उनके पास गया और उनसे माफ़ी मांगे लगा और कहा, मुझे माफ़ कर दीजिये मैंने आपकी बात नहीं मानी थी और आज आप ही के पास शरण के लिए आया हूँ. आप मुझे अपने साथ रहने की अनुमति दे दीजिये. चींटियों की रानी ने उसे माफ़ कर दिया और उसे भी वहाँ रहने दिया, सर्दियाँ बीत गई और एक बार फिर से गरमी आ गई और फिर सभी लोगों ने मेहनत करना शुरू किया. इस बार टिड्डे ने भी खाना इकठ्ठा किया और जब दोबारा सर्दी आई तो वो भी मज़े से अपने घर में रहने लगा.