एक बार एक मुसाफिर अपने घोड़े पर बैठकर आगरा जा रहा था. उसे रास्ते में एक व्यक्ति पैदल चलता हुआ दिखाई दिया. उसने उस व्यक्ति को अपने साथ बैठकर उसे उसके घर छोड़ दिया. लेकिन जब उस मुसाफिर ने उस दूसरे व्यक्ति को उसके घर छोड़कर वापस अपना घोड़ा लेकर चलने लगा तब दूसरे व्यक्ति ने उस मुसाफिर से मनमानी तरीके से वो घोड़ा हथियाने की सोची और उस मुसाफिर से झगड़ने लगा.
झगड़ा इतना बढ़ा कि वहाँ पर बादशाह के सिपाही आ गए और उन दोनों को पकड़ कर बादशाह अकबर के सामने पेशकर दिया. बादशाह ने दोनों की बात सुनी और उन्होंने बीरबल को बुलवाया. बीरबल जब महल में आये तब उन्होंने भी उन दोनों की बात सुनी और कहा, अच्छा तुम दोनों अभी अपने घर जाओ और कल सुबह आकर शाही अस्तबल में से अपना घोड़ा पहचान कर ले जाना.
अगली सुबह दोनों व्यक्ति अस्तलब के पास आ गए. अकबर और बीरबल भी वहीं पर मौजूद थे, तभी दूसरे व्यक्ति को पहले मौका दिया गया और अस्तबल में गया लेकिन बहुत देर तक वो घोड़ा ढूंढ़ता रहा लेकिन वो पहचान नहीं पाया. अब उस मुसाफिर को भेजा गया. उसने चंद मिनटों में ही घोड़े को पहचान लिया और उसे लेकर बाहर आ गया. बीरबल ने उस झूठे-मक्कार को कारगार में डालने का हुक्कम दिया और उस मुसाफिर को उसका घोड़ा लौटा दिया.