एक बार सेठ झोकुचंद बाजार से अपने घर को वापस आ रहे थे, तभी रास्ते में ही उनका बटुआ कही गिर गया. लेकिन उन्हें इस बात की जानकारी तब हुई जब वो अपने घर पहुँच गए और उसके बाद उन्होंने हाए तौबा मचाने लगे. उसके बाद उन्होंने ऐलान कर दिया कि जो कोई भी उनका खोया हुआ बटुआ लौटाएगा उसे वो 100 रुपए बतौर ईनाम देंगे.
उसी शाम वो बटुआ एक ग़रीब लकड़हारे हो मिला वो बाजार में अपनी लड़कियां बेचकर वापस घर आ रहा था. उसने उस बटुए को उठा लिया और अगली सुबह सेठ झोकुचंद के घर चला गया. सेठ ने तुरंत अपना बटुआ पहचान लिया और उसे उस लकड़हारे से ले लिया और उमसें देखा तो उनके पूरे एक हज़ार रुपए बटुए में मौजूद थे.
इसके बाद जब ईनाम के 100 रुपए देने का वक़्त आया तो सेठ ने टालमटोली करना शुरू किया और उसके बाद उसने कहा, वो तो तुमने ईनाम के अपने 100 रुपए पहले ही बटुए से निकाल लिया और इस तरह उस पर आरोप लगाते हुए लड़ाई करने लगे.
लकड़हारें ने कहा, फिर मुखिया के पास चलो अब वहीं इस बात का फैसला करेंगे की कौन सच्चा हैं और कौन झूठा.
दोनों मुखिया सेवकराम के पास पहुँच गए और मुखिया ने सारी कहानी सुनी और सेठ की चालाकी समझ ली. फिर मुखिया ने कहा, तो आपको पूरा यकीं हैं कि आपके बटुए में 11 सौ रुपए थे और इसने 100 रुपए उसमें में से निकाल लिया हैं? सेठ ने कहा है बिलकुल थे.
मुखिया ने फिर कहा, तो सेठ जी ये आपका बटुआ नहीं हैं क्योंकि आप ही कह रहे हैं की आपके बटुए में 11 सौ रुपए थे और अगर इससे बटुए में से रुपए चुराने होते थो ये पूरा बटुआ ही रख लेता आपको देने क्यों आता? इसलिए मुखिया होने के नाते मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ की ये आपका बटुआ नहीं हैं और उन्होंने वो पूरा बटुआ उस गरीब लकड़हारे को दे दिया.
सीख: इस संसार में हर शेर का एक सवा शेर जरूर होता हैं इसलिए चालाकी उतनी ही करनी चाहिए जितना उचित हो नहीं तो आपका हाल भी सेठ झुकुचंद की तरह होगा.