राहत इंदौरी की 5 बेहतरीन शायरी

राहत  इंदौरी अपने समय के बेहतरीन शायर थे. पिछले साल 2020 में कोरोना की वजह से उनका इन्तेकाल हो गया. राहत  इंदौरी ने कई सारी ग़ज़लों और शायरियों की किताबे लिखी हैं. आज यहाँ पर है आपको उनके द्वारा लिखी गई 5 बेहतरीन शायरिओं से रूबरू कराने जा रहे हैं. जो अपने आप में बेमिसाल हैं और इनको पढ़ने वाला अपने आपको उनका फैन होने से नहीं रोक पायेगा.... 

  • आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो 

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो 

ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो 

राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें 

रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो 

एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो 

दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो 

आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में 

कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो 

ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे 

नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो 

ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन

दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो 

ले तो आए शाइरी बाज़ार में 'राहत' मियाँ 

क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो 

जौन एलिया की चुनिंदा शायरी

  • रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है 

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है 

चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है

एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में 

वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है 

अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब 

रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है 

रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं 

रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है 

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो 

धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है 


  • हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते 

हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते 

जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते 

अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है 

उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते 

अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत कर के 

जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते 

रेंगने की भी इजाज़त नहीं हम को वर्ना 

हम जिधर जाते नए फूल खिलाते जाते 

मैं तो जलते हुए सहराओं का इक पत्थर था 

तुम तो दरिया थे मिरी प्यास बुझाते जाते 

मुझ को रोने का सलीक़ा भी नहीं है शायद 

लोग हँसते हैं मुझे देख के आते जाते 

हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे 

कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते 


  • बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए 

बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए 

मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए 

अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में 

है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए 

दिल भी किसी फ़क़ीर के हुजरे से कम नहीं 

दुनिया यहीं पे ला के छुपा देनी चाहिए 

मैं ख़ुद भी करना चाहता हूँ अपना सामना 

तुझ को भी अब नक़ाब उठा देनी चाहिए

मैं फूल हूँ तो फूल को गुल-दान हो नसीब 

मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए 

मैं ताज हूँ तो ताज को सर पर सजाएँ लोग 

मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए 

मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद हो 

मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए 

मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाइए मुझे 

मैं नींद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए 

सच बात कौन है जो सर-ए-आम कह सके 

मैं कह रहा हूँ मुझ को सज़ा देनी चाहिए 


  • तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के 

तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के 

दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा कर के 

आते जाते हैं कई रंग मिरे चेहरे पर 

लोग लेते हैं मज़ा ज़िक्र तुम्हारा कर के 

एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे 

वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के 

आसमानों की तरफ़ फेंक दिया है मैं ने 

चंद मिट्टी के चराग़ों को सितारा कर के 

मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भँवर है जिस की 

तुम ने अच्छा ही किया मुझ से किनारा कर के 

मुंतज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे 

चाँद को छत पुर बुला लूँगा इशारा कर के 

ये राहत साहब की सबसे बेहतरीन और चुनिंदा नज़्मों में हैं. जो आपको उनके द्वारा लिखी कई कई सारी किताबों में मिल जाएँगी.