रामधारी सिंह का जन्म 23 सितम्बर 1908 में हुआ था. रामधारी सिंह दिनकर हिंदी जगत के वो निर्भीक कवि और लेखक रहे है.
जिनकी लेखनी ने देश के शत्रुओं के साथ साथ देश के प्रधानमंत्री तक पर चले हैं. 1962 के युद्ध हार के दौरान जो क्रोध इनकी कवितों में दिखाई देता हैं वो तो देखते ही बनता हैं. इन्होंने उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को भैसा तक कह दिया था. रामधारी सिंह 'दिनकर' हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं. 24 अप्रैल 1974 में इनका निधन हो गया था.
दिनकर को राष्ट्रकवि के नाम से जाना जाता हैं. दिनकर ने कई सारी कविताएं लिखी हैं, जो पूरे हिंदी साहित्य में बहुत ही बेहतरीन कविताओं में गिना जाता हैं. इसलिए आज हम आपको दिनकर की कुछ सवर्श्रेष्ठ कविताओं के बारे में बताने जा रहे हैं.....
- कृष्ण की चेतावनी: कृष्ण की चेतावनी की रश्मिरथी का सबसे बेहतरीन प्रसंग हैं. ये कविता दिनकर की बेहतरीन कविताओं में से हैं. जिसका एक छोटा सा अंश यहाँ पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं....
वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।
मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये।
‘दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!
दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है। आगे और भी..............
यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिस्र गगन में
कूक रही क्यों नियति व्यंग से इस गोधूलि-लगन में ?
मरघट में तू साज रही दिल्ली कैसे श्रृंगार?
यह बहार का स्वांग अरी इस उजड़े चमन में!
इस उजाड़ निर्जन खंडहर में
छिन्न-भिन्न उजड़े इस घर मे
तुझे रूप सजाने की सूझी
इस सत्यानाश प्रहर में !
डाल-डाल पर छेड़ रही कोयल मर्सिया-तराना,
और तुझे सूझा इस दम ही उत्सव हाय, मनाना;
हम धोते हैं घाव इधर सतलज के शीतल जल से,
उधर तुझे भाता है इनपर नमक हाय, छिड़काना !
महल कहां बस, हमें सहारा
केवल फ़ूस-फ़ास, तॄणदल का;
अन्न नहीं, अवलम्ब प्राण का
गम, आँसू या गंगाजल का;
- चांद का कुर्ता: चांद का कुर्ता दिनकर साहब की सबसे अच्छी बाल कविताओं में गिनी जाती हैं. ये कविता आज इतने सालों बाद भी लोग खूब पढ़ते हैं.
हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला,
‘‘सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला।
सनसन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूँ,
ठिठुर-ठिठुरकर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ।
आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का,
न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का।’’
बच्चे की सुन बात कहा माता ने, ‘‘अरे सलोने!
कुशल करें भगवान, लगें मत तुझको जादू-टोने।
जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ,
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ।
कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,
बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा।
घटता-बढ़ता रोज किसी दिन ऐसा भी करता है,
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है।
अब तू ही ये बता, नाप तेरा किस रोज़ लिवाएँ,
सी दें एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आए?’’