अकबर इलाहाबादी का जन्म 16 नवंबर 1846 में पैदा हुए थे. इन्होने एक से बढ़कर एक बेहतरीन शेर, ग़ज़लें और नज़्में लिखी. ये इलाहाबाद में ही जन्मे थे.
इसलिए इनका आखिर नाम भी अकबर इलाहाबादी हो गया था. वैसे इनका असली नाम सैयद अकबर हुसैन रिज़्वी था. शायर होने एक साथ इलाहाबाद के सेशन कोर्ट में जज भी थे. उनका सबसे बेहतरीन शेर कुछ इस प्रकार है कि
"खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो"
वैसे तो अकबर इलाहाबादी ने हर एक मुद्दे पर शेरलिखा, नज्में लिखी. साथ ही उन्होंने शराब पर भी उम्दा ग़ज़ल लिखी. जिसे घुलम अली साहब ने गए कर हमेशा-हमेशा के लिए अमर कर दिया. जज साहब शराब के शौक़ीन नहीं थे और न ही ऐसा कोई ज़िक्र मिलता है कि वो शराब या मदिरा का सेवन करते थे.
15 फरवरी 1921 को वो इस दुनिया से रुखसत हो गए और अपने पीछे छोड़ गए अपनी बेहतरीन ग़ज़लें, नज़्में और शायरियां. जो आने वाले लोग बहुत चाव से पढ़ते हैं.
इसी के साथ उन्होंने कई सारे ग़ज़लें और कविताएं लिखी. आज हम आपके लिए उनकी कुछ बेहतरीन और चुनिंदा कविताएं लेकर आये हैं. जो इस प्रकार से हैं....
- हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है
- हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
- इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
- दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ
- जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर
हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है
- आई होगी किसी को हिज्र में मौत
मुझ को तो नींद भी नहीं आती
- लोग कहते हैं बदलता है ज़माना सब को
मर्द वो हैं जो ज़माने को बदल देते हैं
- इलाही कैसी कैसी सूरतें तू ने बनाई हैं
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है
- आह जो दिल से निकाली जाएगी
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी
- हूँ मैं परवाना मगर शम्मा तो हो रात तो हो
जान देने को हूँ मौजूद कोई बात तो हो
- कोई हँस रहा है कोई रो रहा है
कोई पा रहा है कोई खो रहा है
- कोई ताक में है किसी को है गफ़लत
कोई जागता है कोई सो रहा है
- कहीँ नाउम्मीदी ने बिजली गिराई
कोई बीज उम्मीद के बो रहा है
- इसी सोच में मैं तो रहता हूँ 'अकबर'
यह क्या हो रहा है यह क्यों हो रहा है
- हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना
- मोहब्बत का तुम से असर क्या कहूँ
नज़र मिल गई दिल धड़कने लगा
- सीने से लगाएँ तुम्हें अरमान यही है
जीने का मज़ा है तो मिरी जान यही है