इंसान के जीवन में उसे हर कदम-कदम पर प्रोत्साहन और उत्साह बढ़ाने वाले लोगों की जरूरत होती हैं. लोग अपने तकलीफों और नाउम्मीदी से जकड़ी हार जाते हैं.
साथ ही आज के समय में लोगों के अंदर से शिष्टाचार-बड़ों का सम्मान और अपनों के प्रति प्यार कम होता जा रहा हैं. ऐसे में कबीर के दोहे हमारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए उसी प्रोत्साहन और उत्साह को बढ़ाने वाले कारक के रूप में काम आते हैं. साथ ही कबीर के दोहों में ज्ञान की कुछ ऐसी बातें छिपी है जो हमारे जीवन को बेहतर दिशा में ले जाते हैं. इसलिए कबीर के ये 5 दोहे आपके जीने का अंदाज बदलने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं. तो आज हम आपको कबीर के कुछ खास 5 दोहों के बारे में बताएंगे जो आपके जीवन के लिए बहुत ही जरुरी होते हैं......
1. यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।
अर्थात: कबीर इस दोहे के माध्यम से कहते है कि इंसान का ये जो शरीर है वो विष से भरा हुआ बर्तन है और गुरू अमृत रूपी खान हैं. अगर सिर्फ शीश झुका देने मात्र से आपको गुरू की कृपया मिल जाती है तो भी ये सौदा सबसे सस्ता हैं.
2. ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।
अर्थात: कबीर का ये दोहा आज भी बहुत प्रासंगिक हैं. इसका अर्थ है कि हमें ऐसी वाणी बोलिनी चाहिए जिससे सुन से लोगों को बहुत ही आनंद की अनुभूति हो और साथ ही अपने मन को अच्छा लगे.
3. बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।
अर्थात: खजूर का पेड़ देखने में बहुत बड़ा होता है लेकिन किसी को छाया देने के काम नहीं आता. साथ ही इसका फल भी इंसान की पहुँच से भी काफी दूर होता हैं. इसी तरह से अगर आपके बहुत धन है लेकिन किसी की मदद करने की इच्छा आपके मन में नहीं हैं. तो आपके सारे-धन दौलत व्यर्थ हैं.
4. निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें ।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ।
अर्थात: जो लोग दूसरों की निंदा करते है उन्हें आपने आस-पास ही रखना चाहिए. ऐसे लोग आपकी कमी को आप से कह देते हैं और आप अपने अंदर की उस कमी को आप सुधार लेते हैं. इसलिए कबीर दास ने कहा हैं की निंदक लोगों को आस-पास ही रखिए. पानी और साबुन के बिना ही ये आपकी बुराई को दूर करके आपको साफ और स्वच्छ बना देते हैं.
5. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।
अर्थात: करीब दास कहते है कि जब मैं बाजार में बुराई देखें के लिए गया तो मुझे कोई भी बुरा नहीं दिखा. लेकिन जब मैंने अपने भीतर झांककर देखा तो मुझसे बड़ा कोई बुरा इंसान नहीं दिखाई दिया. इसलिए इंसान को दूसरों में बुराई ढूढ़ने से अच्छा हैं की वो अपने गिरेबान में झांककर देखन ले.
कबीर दास ने ये दोहे आज से सालों पहले लिखें थे लेकिन इनकी प्रासंगिकता आज भी उतनी हैं जितनी आज से सौ साल पहले थी और आने वाली समय में भी रहेंगी. ये दोहे आपके जीवन का तरीका और अंदाज दोनों बदलने की काबिलियत रखते हैं. बशर्ते आपको उन्हें आपने जीवन में आत्मसात करना होगा. संत कबीर एक बहुत ही महान समाज सुधारक थे. साथ ही वो हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के बेहतरीन कवियों में से एक हैं. इनकी सारी रचनाएँ कई बोलियों का मिश्रण हैं. इस वजह से इनकी लेखनी को पंचमेल खिचड़ी कहा जाता हैं.