जयशंकर प्रसाद का जन्म माघ शुक्ल 30 जनवरी 1889 ई० को बनारस के सुंघनी साहु परिवार में हुआ. महाकाल की आराधना के फलस्वरूप पुत्र जन्म लेने के कारण बचपन में जयशंकर प्रसाद को 'झारखण्डी' कहकर पुकारा जाता था.
इनकी पहली काव्य संग्रह 'चित्राधार' है. जो सन् 1918 में प्रकाशित हुआ था. इसमें उनके ब्रजभाषा और खड़ी बोली में कविता, कहानी, नाटक, निबन्धों का संकलन किया गया था.
आज हम आपके लिए उनकी 5 सबसे चुनिंदा कविताएं लेकर आये हैं. जो छायावाद की सबसे बेहतरीन कविताओं में गिनी जाती हैं.....
आंसू
इस करुणा कलित हृदय में
अब विकल रागिनी बजती
क्यों हाहाकार स्वरों में
वेदना असीम गरजती?
आती हैं शून्य क्षितिज से
क्यों लौट प्रतिध्वनि मेरी
टकराती बिलखाती-सी
पगली-सी देती फेरी?
छिल-छिल कर छाले फोड़े
मल-मल कर मृदुल चरण से
धुल-धुल कर वह रह जाते
आँसू करुणा के जल से
अभिलाषाओं की करवट
फिर सुप्त व्यथा का जगना
सुख का सपना हो जाना
भींगी पलकों का लगना।
जो घनीभूत पीड़ा थी
मस्तक में स्मृति-सी छाई
दुर्दिन में आँसू बनकर
वह आज बरसने आई
रो-रोकर सिसक-सिसक कर
कहता मैं करुण कहानी
तुम सुमन नोचते सुनते
करते जानी अनजानी।
झंझा झकोर गर्जन था
बिजली सी थी नीरदमाला,
पाकर इस शून्य हृदय को
सबने आ डेरा डाला।
बिजली माला पहने फिर
मुसकाता था आँगन में
हाँ, कौन बरसा जाता था
रस बूँद हमारे मन में?
गौरव था , नीचे आए
प्रियतम मिलने को मेरे
मै इठला उठा अकिंचन
देखे ज्यों स्वप्न सवेरे।
शशि मुख पर घूँघट डाले,
अँचल मे दीप छिपाए।
जीवन की गोधूली में,
कौतूहल से तुम आए।
लहर
वे कुछ दिन कितने सुंदर थे ?
जब सावन घन सघन बरसते
इन आँखों की छाया भर थे
प्राण पपीहे के स्वर वाली
बरस रही थी जब हरियाली
रस जलकन मालती मुकुल से
जो मदमाते गंध विधुर थे
तुम्हारी आँखों का बचपन !
तुम्हारी आँखों का बचपन !
खेलता था जब अल्हड़ खेल,
अजिर के उर में भरा कुलेल,
हारता था हँस-हँस कर मन,
आह रे वह व्यतीत जीवन !
तुम्हारी आँखों का बचपन !
साथ ले सहचर सरस वसन्त,
चंक्रमण कर्ता मधुर दिगन्त ,
गूँजता किलकारी निस्वन ,
पुलक उठता तब मलय-पवन.
तुम्हारी आँखों का बचपन !
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो
क्या कहती हो ठहरो नारी
संकल्प अश्रु-जल-से-अपने
तुम दान कर चुकी पहले ही
जीवन के सोने-से सपने
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास-रजत-नग पगतल में
पीयूष-स्रोत-सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में
देवों की विजय, दानवों की
हारों का होता-युद्ध रहा
संघर्ष सदा उर-अंतर में जीवित
रह नित्य-विरूद्ध रहा
आँसू से भींगे अंचल पर
मन का सब कुछ रखना होगा
तुमको अपनी स्मित रेखा से
यह संधिपत्र लिखना होगा
अब जागो जीवन के प्रभात !
अब जागो जीवन के प्रभात !
वसुधा पर ओस बने बिखरे
हिमकन आँसू जो क्षोभ भरे
उषा बटोरती अरुण गात !
अब जागो जीवन के प्रभात !
तम नयनों की ताराएँ सब-
मुद रही किरण दल में हैं अब,
चल रहा सुखद यह मलय वात !
अब जागो जीवन के प्रभात !
रजनी की लाज समेटो तो,
कलरव से उठ कर भेंटो तो ,
अरुणाचल में चल रही बात,
अब जागो जीवन के प्रभात
जयशंकर प्रसाद ने छायावाद का सबसे बेहतरीन महाकाव्य कामायनी की रचना की थी. साथ ही प्रसाद जी ने कई सारी बेहतरीन कहानियों, उपन्यासों और नाटकों का सफलता पूर्वक लेखन किया. अजातशत्रु, ध्रुस्वमिनी, उनके सर्वश्रेष्ठ नाटक हैं. साथ ही आकाशदीप उनकी बेह्तरीन कहानियों में से एक हैं.