टूटी हुई चीजों को आसानी से जोड़ने के लिए हर कोई एक ही चीज का नाम लेता हैं. वो हैं फेविकोल, जिसकी पहुँच आज हर एक घर में पहुँच गई हैं. छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी हर एक टूटी हुई चीजों को मिनटों में जोड़ने का काम करता हैं फेविकोल.
यहाँ तक की इसकी पंच लाइन भी हैं कि ''फेविकोल का मजबूत जोड़ पानी में भी ना टूटे.''
मगर कभी आपने सोच हैं कि फेविकोल के अंदर जो सफेद रंग का तरल पदार्थ होता हैं. उसे क्या कहते हैं? आमतौर पर हम और आप यही कहते हैं कि फेविकोल ले आओ. इसी से ये चिपकेगा लेकिन कभी आपने सोचा हैं कि फेविकोल तो उस ब्रांड का नाम हैं. उस कंपनी का नाम हैं. उस सफेद तरल पदार्थ का क्या नाम हैं? जिससे चीजें चिपकती हैं. अब आप कहेंगे कि वो तो गोंद हैं. लेकिन आपको बता दें कि ये गोंद नहीं होता हैं. इसका असली नाम बहुत कम लोग जानते हैं. इसलिए आज हम आपको इसी सवाल का जवाब देने जा रहे हैं. तो चलिए जानते हैं कि फेविकोल के डिब्बे में बंद इस पदार्थ का असली नाम क्या हैं?
कब शुरू हुई थी फेविकोल कंपनी?
बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि उनके टूटे चीजों को मिनटों में चिपकाकर सही करने वाले कंपनी कब शुरू हुई थी. इस कंपनी के मालिक पिडीलाइट इंडस्ट्रीज के फाउंडर बलवंत पारेख हैं. फेविकोल एक सबसे ज्यादा भरोसेमंद भारतीय ब्रांड हैं. इसकी शुरुआत 1959 में हुई थी. जिसने पूरे भारत को एक सफेद, गाढ़े और एरोमेटिक सुगन्ध वाले गोंद से लोगों को परिचित करवाया था. इसका निर्माण पहले कारपेंटरों के लिए किया गया था.
क्या हैं सफेद तरल पदार्थ का नाम?
अब हम आपको बताते हैं कि फेविकोल के डिब्बे में बंद ये चिपचिपा सा तरल पदार्थ क्या हैं. तो इसका नाम एढ़ेसिव (Adhesive) हैं. जो एक कृत्रिम राल हैं. जिसे सिंथेटिक रेजि़न भी कहा जाता हैं. ये भी बेसिकली गोंद का चिपचिपा पेस्ट होता हैं. जो चीजों चिपकाने में मदद करता हैं. लेकिन ये पारंपरिक गोंद से काफी अलग होता हैं. इसलिए सीधे-सीधे गोंद कह सकते हैं.
आखिर फेविकोल उस डिब्बे में क्यों नहीं चिपकता जिसमें वो भरा जाता हैं?
क्या कभी आपने ये सोचा हैं कि आखिर जब फेविकोल पानी में भी मजबूती से टिक सकता हैं. तो उस डिब्बे में ये क्यों नहीं चिपकता जिसमें ये भरा जाता हैं? क्यों हैरान हो गए ना? लेकिन ये सवाल बहुत ही बेहतरीन हैं और इसका भी जवाब बहुत कम लोग जानते हैं. लेकिन आज हम आपको इसका भी आंसर दे देते हैं.
दरअसल फेविकोल पॉलिमर और पानी से केमिकल तरीके से बनाया जाता हैं. इसके बाद इसे एक डिब्बे में भरकर डाल दिया जाता हैं. लेकिन इस डिब्बे के अंदर इस तरल पदार्थ को वाष्पीकरण होने के लिए हवा नहीं मिल पाती हैं. जिसकी वजह से ये गीला ही बना रहता हैं और ये आपस में चिपकते नहीं हैं.