“काश...तुम मेरे होते,
और ये अल्फ़ाज़ तुम्हारे होते।”
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर
जाते जाते उस का वो मुड़ कर दोबारा देखना
किसके बारे में सोचती हैं दोस्त तू तो बिल्कुल बदल गई हैं दोस्त
तेरी खातिर तेरी ख़ुशी के लिए, मैंने सिगरेट भी छोड़ दी हैं दोस्त
एक शिकायत मुझे भी हैं तुझसे, तू बहुत झूठ बोलती हैं दोस्त.
जिस की आँखों में कटी थीं
सदियाँ उस ने सदियों की जुदाई दी है