मनुष्य को कभी ये नहीं सोचना चाहिए कि वो कितना खुश हैं,
बल्कि ये सोचना चाहिए की उसकी वजह से दूसरे कितने खुश हैं.
Aaj ka suvichar
प्रशंसा से पिघलना मत
और आलोचना से उबलना मत
कितने मूर्ख हैं
हम भगवान के बनाए फलों को भगवान को ही अर्पण करके धन दौलत माँगने लगते हैं
जिसकी नीति अच्छी होगी,
उसकी हमेशा उन्नत होगी,
“मैं श्रेष्ट हूँ”… यह आत्मविश्वास है,
लेकिन
“सिर्फ मैं ही श्रेष्ट हूँ”…यह अहंकार है।
मीठी जुबान, अच्छी आदतें,
अच्छा व्यवहार और अच्छे लोग, हमेशा सम्मानित होते हैं।
कुछ लोग ज़िन्दगी होते हैं,
कुछ लोग ज़िन्दगी में होते हैं,
कुछ लोगों से ज़िन्दगी होती है,
पर कुछ लोग होते हैं, तो ज़िन्दगी होती है।