जन्नत की आरजू में सब हज को चले गये,
हमने भी मोहब्बत से अपनी माँ को देख लिया!
हाय! अर्ज़े-आरज़ू पर कह गए हैं ‘वाह’ वो,
अपने शायर होने पर पछता रहे हैं हम बहुत!
लबों से छू लूँ जिस्म तेरा, साँसों में साँस जगा जाऊँ, तू कहे अगर इक बार मुझे, मैं खुद ही तुझमें समा जाऊँ।
तड़प रहीं हैं मेरी साँसें तुझे महसूस करने को, खुशबू की तरह बिखर जाओ तो कुछ बात बने।
आरजू होनी चाहिए किसी को याद करने की लम्हे तो अपने आप मिल जाते है|