ज़िन्दगी जीने के लिए मिली थी,
अफ़सोस मैंने उसके इंतज़ार में गुजार दी।
खुली किताब थे हम
अफ़सोस अनपढ़ के हाथों थे हम।
जिसे डर ही नही था मुझे खोने का
वो क्या अफ़सोस करेगा मेरे ना होने का।
अफसोस ये नहीं है कि दर्द कितना है,अफसोस तो ये है कि बस तुम्हें परवाह नहीं।
मैं फना हो गया अफ़सोस वो बदला भी नहीं,
मेरी चाहतों से भी सच्ची रहीं नफरतें उसकी।
मुझे कुछ अफ़सोस नहीं के मेरे पास सब कुछ होना चाहिए था
मै उस वक़्त भी मुस्कुराता था जब मुझे रोना चाहिए था