खुली किताब थे हम
अफ़सोस अनपढ़ के हाथों थे हम।
जिसे डर ही नही था मुझे खोने का
वो क्या अफ़सोस करेगा मेरे ना होने का।
अफसोस यही है जिंदगी का
की एक जिंदगी मिली
उसमे भी तू ना मिली।