खुली किताब थे हम
अफ़सोस अनपढ़ के हाथों थे हम।
अफसोस यही है जिंदगी का
की एक जिंदगी मिली
उसमे भी तू ना मिली।
उसकी आँखों में नज़र आता है सारा जहां मुझ को,अफ़सोस कि उन आँखों में कभी खुद को नहीं देखा।