न बात हुई न ऐतबार किया, न ज़िक्र किया
न इज़्हार किया,
सज़दे किए, इंतेज़ार किया, तुझे छुआ नहीं
पर प्यार किया..
मोहब्बत का हम ने ये दस्तूर देखा
वादों को टूट कर होते चूर देखा
ऐतबार की लाश लिए फिरता हैं जो
एक चाहने वाला ऐसा भी मजबूर देखा
ताउम्र मैंने तेरा ऐतबार किया
बेवफाई का मुझे ये इनाम मिला
चाहकर भी तुझसे दूर ना हो सका
हमारे इश्क का चला ऐसा सिलसिला
ऐतबार है मुझे तेरी उस
अनसुनी आहट पर
जो एक दिन ले आएगी तुझे
मेरे हाथों की लकीरों पर
एतबार है मुझे इस पागल दिल पर
जो बरसों से सिर्फ तेरा दीवाना है
हार मानने की इजाजत नहीं है मुझे
क्योंकि मैंने दिल तुझ से लगाया है
आप का एतबार कौन करे,
रोज़ का इंतिज़ार कौन करे!