जब रहना है तन्हा तो फिर रोना कैसा,
जो था ही नहीं अपना उसे खोना कैसा !
अकेला भी इस तरह पड़ गया हूँ
कि मेरा हौसला भी साथ नहीं दे रहा है !
काश तू समझ सकती मोहब्बत के उसूलों को,
किसी की साँसों में समाकर उसे तन्हा नहीं करते !
वो मन बना चुके थे हमे छोड़ जाने का,
किस्मत तो सिर्फ उनके लिए एक बहाना था !
मुझको मेरे अकेलेपन से अब,
शिकायत नहीं है मैं पत्थर हूँ मुझे,
खुद से भी मुहब्बत नहीं है !