बीच राह में कुछ इस अंदाज़ से छोड़ा उसने हाथ मेरा,कोई अब सहारा भी दे तो घबरा जाता हूं मैं!
"हर बार कुछ अच्छी बातें ना बताया करो,
कभी ख़ामोशी से बस मुझे सुन जाया करो l"
हुनर नही है मुझमे झूठी बात करने का,यही कारण है लोगो के नज़र अंदाज़ करने का.
लौटकर आया हूँ फिर से मैदान मै?
अंदाज वही है सिर्फ तरीका बदल गया है!
हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ,
जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा.
कुछ आपका अंदाज है कुछ मौसम रंगीन है,
तारीफ करूँ या चुप रहूँ जुर्म दोनो संगीन है!