हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
अब ना मैं वो हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे
फिर भी मशहूर हैं, शहरों में फ़साने मेरे
जिंदगी हैं तो नए जख्म भी लग जायेंगे
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे
आप से रोज़ मुलाक़ात की उम्मीद नहीं
अब कहा शहर में रहते हैं ठिकाने मेरे
सर झुकाने की आदत नहीं है,
आँसू बहाने की आदत नहीं है,
हम खो गए तो पछताओगे बहुत…
क्योंकि हमे लौट कर आने की आदत नहीं है.
हक़ से अगर दे दो,
नफरत भी कबूल है हमे,
खैरात में तो हम…
तुम्हारी महोब्बत भी न ले.
जो मेरे मुक्कदर में है वो खुद चल कर आएगा,
जो नहीं है उसे अपना खौफ लाएगा !
ये जो लडकियां मुझे BAD बॉय कहती है ,
शायद उन्हें ये नहीं पता की,
शहजादे कभी सुधरे हुए नहीं होते !