मेरी आवाज किसी शोर में गर डूब गयी,
मेरी खामोशी बहुत दूर तलक सुनाई देगी!
एक आवाज ही काफी है हजारों के शोर में,
मैं एक जुगनू से इश्क़ करता हूँ तारों के दौर में!
याद आएगी हर रोज मगर तुझे आवाज न दूँगा,तेरे लिए हर गजल हर शायरी मगर तेरा नाम न लूँगा.
सुकून मिलता है दो लफ्ज कागज पर उतार कर,कह भी देता हूँ और आवाज भी नहीं आती.
यहाँ सब खामोश हैं कोई आवाज़ नहीं करता,
सच बोलकर कोई, किसी को नाराज़ नहीं करता।
मेरी आवाज़ ही परदा है मेरे चेहरे का,
मैं हूँ ख़ामोश जहाँ, मुझको वहाँ से सुनिए।