पीने से कर चुका था मैं तौबा यारो,
बादलों का रंग देखकर नियत बदल गई।
तब्दीली जब भी आती है मौसमों की अदाओं में
किसी का यूं बदल जाना बहुत ही याद आता है
मगर रिश्ता आज भी वही पुराना है।
बादल का टुकड़ा है,
या ख़याल तुम्हारा..!!
ढलती शाम में ,
उफ़्फ़्फ ये नज़ारा तुम्हारा....!!!!
ये गरजते बादल,ये बिन मौसम की बारिश, लगता है
अब जनवरी को भी दर्द हो रहा है दिसम्बर के जाने का