"अब तुझसे क्या शिकवा करूं, लेकिन
तेरी यादों की बारिश ने तबाही बहुत मचाई है।"
बारिश में चलने से एक बात याद आती है,
फिसलने के डर से वो मेरा हाथ थाम लेता था।
तेरे ख्यालों में चलते चलते कहीं फिसल न जाऊं मैं,
अपनी यादों को रोक ले के शहर में बारिश का मौसम है।
कल रात मैंने सारे ग़म आसमान को सुना दिए
आज मैं चुप हूँ और आसमान बरस रहा है
इस बारिश को देख कर मन भी भीग सा गया
लगता है जैसे उसने भी मेरी तरह कोई अपना खोया है.!