कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँ ही आँखें,
उदास होने का कोई सबब नहीं होताा!
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा
कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िंदगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा!
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं,
तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई!
कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा