बहुत खूबसूरत है तेरे इन्तजार का आलम,
बेकरार सी आँखों में इश्क़ बेहिसाब लिए बैठे हैं!
कोशिश हज़ार की के इसे रोक लूँ मगर…
ठहरी हुई घड़ी में भी, ठहरा नहीं ये वक्त!!
बेकरार सी आँखों में इश्क़ बेहिसाब लिए बैठे…
ज़िन्दगी-ए-बेकरार में यूं सुकूँ बन कर आओ…
ज्यूं सर्द मौसम में दरख़्तों से छन कर धूप आती है!
बेक़रारी है कभी, पूरे समन्दर की तरह,
और कभी मिल जाता है बस, एक क़तरे में सुकून.