कसूर तो बहुत किये हैं ज़िन्दगी में
पर सज़ा वंहा मिली जहाँ बेकसूर थे..
बेकसूर कोई नहीं इस ज़माने मे,
बस सबके गुनाह पता नहीं चलते.
हम बेक़सूर लोग भी बड़े दिलचस्प होते हैं,
शर्मिंदा हो जाते हैं ख़ता के बग़ैर भी !!
मैं एक बेक़सूर वारदात की तरह जहाँ की तहाँ रही,तुम गवाहों के बयानो की तरह बदलते चले गए।
मैं एक बेक़सूर वारदात की तरह जहाँ की तहाँ रही,
तुम गवाहों के बयानो की तरह बदलते चले गए।
निगाहें फेर वो जो मुझसे दूर बैठे हैं,उनको पता भी नही हम बेकसूर बैठे हैं.!!
निगाहें फेर वो जो मुझसे दूर बैठे हैं,
उनको पता भी नही हम बेकसूर बैठे हैं.!!